एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी (डिजाइन फोटो)
नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख सांसद असदुद्दीन ओवैसी अलग तेवर और नए राजनीतिक अवतार में नजर आ रहे हैं। इन दिनों ओवैसी ने पाकिस्तान और आतंकवाद के खिलाफ बिल्कुल बीजेपी नेताओं की तरह ही आक्रामक रुख अपनाया हुआ है।
बिहार के ढाका में सिर पर तिरंगा पगड़ी पहने ओवैसी ने आतंकवाद के खिलाफ जिहाद का ऐलान किया और कहा कि अब पाकिस्तान को समझाने का वक्त नहीं है, अब उसे मुंहतोड़ जवाब देने का वक्त है। बिहार के ढाका में एक रैली में जब ओवैसी तिरंगा पगड़ी पहनकर मंच पर आए तो पूरा मैदान नारों से गूंज उठा। ओवैसी के मंच पर एक बड़ा बैनर लगा हुआ था, जिस पर लिखा था ‘आतंकवाद के खिलाफ ओवैसी का जिहाद’।
पहलगाम हमले के बाद से ही ओवैसी पाकिस्तान को करारा जवाब दे रहे हैं और आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की बात कर रहे हैं। इस तरह ओवैसी एक राष्ट्रवादी चेहरा बनकर उभरे हैं। इसके पीछे राजनीतिक पंडितों का कहना है कि वह अपनी सिर्फ मुस्लिम प्रेमी छवि से बाहर निकलने की कोशिश में हैं। लेकिन हिंदू समुदाय के दिलों में जगह बना पाएंगे? इसका जवाब जान लेते हैं?
एआईएमआईएम के सभी नेता बोलते हैं। एआईएमआईएम की यह बात भी सही है कि ओवैसी सड़क से लेकर संसद तक मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर सबसे मुखर रहते हैं, यही उनकी सबसे बड़ी लोकप्रियता का कारण भी बना है। चाहे बाबरी मस्जिद पर फैसले का मुद्दा हो, तीन तलाक का मुद्दा हो या ‘लव जिहाद’ का मुद्दा हो या सीएए-एनआरसी की बात हो या वक्फ संशोधन विधेयक का विरोध हो। ओवैसी खुलकर बोलते नजर आए हैं।
मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का मुद्दा उठाकर वह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों पर निशाना साधते रहे हैं। इस तरह ओवैसी ने मुस्लिम समुदाय के बीच खुद को मसीहा के तौर पर स्थापित किया। अपनी इस मजबूत पहचान के सहारे ओवैसी न सिर्फ तेलंगाना बल्कि महाराष्ट्र, बिहार और उत्तर प्रदेश में भी अपनी राजनीतिक जड़ें जमाने में सफल रहे।
बिहार में असदुद्दीन ओवैसी (सोर्स- सोशल मीडिया)
मुस्लिम वोटों के सहारे ओवैसी ने अपनी पार्टी को हैदराबाद के चारमीनार इलाके से बाहर निकालकर देश में नई पहचान दिलाई। ओवैसी हैदराबाद से लगातार सांसद हैं, जबकि तेलंगाना के सात विधायक एआईएमआईएम के हैं। इसी तरह ओवैसी लगातार तीसरी बार महाराष्ट्र में दो सीटें जीतने में कामयाब रहे हैं।
2020 में एआईएमआईएम ने बिहार में पांच विधानसभा सीटें जीती थीं। इसके अलावा ओवैसी की पार्टी को यूपी से लेकर बिहार और गुजरात तक पहचान मिली है, लेकिन पार्टी का राजनीतिक आधार मुस्लिम इलाकों तक ही सीमित है। एआईएमआईएम पर पूरी तरह से मुस्लिमों, खासकर उच्च वर्ग की मुस्लिम जातियों का दबदबा है।
ओवैसी की मुस्लिम हितैषी राजनीति के कारण वह हिंदू समुदाय के बीच पैर नहीं जमा पाई। कट्टर मुस्लिम राजनीति के कारण धर्मनिरपेक्ष पार्टियां भी उनसे दूरी बनाए रखती हैं। ऐसे में ओवैसी ने पहलगाम हमले के बाद अपनी मुस्लिम हितैषी छवि को तोड़ने और राष्ट्रवादी छवि बनाने पर काम करना शुरू कर दिया है। यही वजह है कि असदुद्दीन ओवैसी पहलगाम हमले के बाद अलग तेवर और लुक में नजर आ रहे हैं।
बिहार में जनसभा को संबोधित करते हुए असदुद्दीन ओवैसी (सोर्स- सोशल मीडिया)
बिहार के ढाका में ओवैसी ने कहा कि अब पाकिस्तान को समझाने का समय नहीं है। अब उसे मुंहतोड़ जवाब देने का समय है। उन्होंने कहा कि हम कब तक अपनी बहनों और बेटियों को पाकिस्तानी आतंकियों के हाथों विधवा होते देखेंगे। उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले में भारत सरकार को पूरा समर्थन देगी। ओवैसी ने पहलगाम आतंकी हमले में मारे गए सभी लोगों को शहीद का दर्जा देने की मांग उठाई।
देश हिंदू-मुस्लिम एकता बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, क्योंकि पहलगाम हमले में आतंकियों ने धर्म के आधार पर लोगों की हत्या की है, इसका असर देश के मुसलमानों पर भी पड़ सकता है। ओवैसी भारतीय मुसलमानों को पाकिस्तानी पहचान से दूर रखने की और भारतीय पहचान के साथ रखने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही, वह केवल मुसलमानों की राजनीति करके पार्टी को राष्ट्रीय पहचान नहीं दिला पाएंगे।
2020 के बिहार चुनाव में AIMIM के टिकट पर जीतने वाले सभी पांच विधायक मुसलमान थे, जिनमें से 4 पार्टी छोड़कर आरजेडी में शामिल हो चुके हैं। इस बार ओवैसी की रणनीति मुसलमानों के साथ बड़ी संख्या में हिंदुओं को भी टिकट देने की है। पूर्वी चंपारण की ढाका विधानसभा सीट मुस्लिम बहुल है, जहां से ओवैसी ने राणा रंजीत सिंह को AIMIM का उम्मीदवार भी बनाया है।
ओवैसी ने इस बार बिहार में 24 विधानसभा सीटें जीतने का दावा किया है। माना जा रहा है कि इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ओवैसी अपनी मुस्लिम समर्थक छवि से बाहर आकर राष्ट्रवादी छवि बनाने में जुटे हैं ताकि मुसलमानों के साथ धर्मनिरपेक्ष वोटों की राजनीतिक केमिस्ट्री बनाई जा सके। ऐसे में देखना यह है कि वह धर्मनिरपेक्ष हिंदू समुदाय का भरोसा जीत पाते हैं या नहीं? और अगर हुए तो सेक्युलर की छवि वाली कांग्रेस को बड़ा झटका जरूर लगेगा।