
विनोबा भावे: समाज सुधारक, अहिंसा के पुजारी और भूदान आंदोलन के नेता
नई दिल्ली: विनोबा भावे का जीवन समाज सेवा, अहिंसा और आत्म-ज्ञान की मिसाल था। उनको भारत के राष्ट्रीय शिक्षक के रूप में सम्मानित किया गया था। उनका असली नाम विनायक नरहरी भावे था, लेकिन वो विनोबा भावे के नाम से अधिक प्रसिद्ध हुए। आज 15 नवंबर को उनकी पुण्यतिथि है।
विनोबा जी महात्मा गांधी के अनुयायी थे तथा उनकी तरह ही अहिंसा, सत्य और समानता के सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाया। उनका मानना था कि केवल बाहरी दुनिया में ही बदलाव लाना महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि व्यक्ति के अंदर भी परिवर्तन होना चाहिए।
विनोबा जी का सबसे बड़ा योगदान भूदान आंदोलन के रूप में था, जो उन्होंने 1951 में शुरू किया। इस आंदोलन का उद्देश्य गरीबों को ज़मीन देने तथा उनके जीवन को बेहतर बनाने का था। उन्होंने देशभर के कई गांवों में जाकर बड़े ज़मींदारों से ज़मीन का दान प्राप्त किया और उस जमीन को गरीबों में वितरित किया।
उनका मानना था कि संपत्ति का बंटवारा ही समाज में समानता और न्याय ला सकता है। इस आंदोलन ने भारतीय समाज में जमीन के मालिकाना हक को लेकर जागरूकता फैलाई तथा समाज में गरीबी कम करने की दिशा में एक अहम कदम साबित हुआ।
विनोबा भावे की सोच ने समाज में गहरी छाप छोड़ी। उन्होंने हमेशा अपने जीवन में अहिंसा के सिद्धांत को बनाए रखा तथा यह भी कहा कि हिंसा केवल बाहरी रूप में नहीं, बल्कि मन में भी हो सकती है। उनका ये कहना था कि हिंसक मन को शांत करना बहुत जरूरी है, क्योंकि बाहरी तौर पर अहिंसक बनने से कुछ नहीं होता, जब तक आपके मन में हिंसा की भावना हो।
विनोबा भावे का एक और महत्वपूर्ण सिद्धांत था कि “निडरता से प्रगति और विनम्रता से सुरक्षा”। उनका विश्वास था कि किसी भी काम को करने के लिए निडर होना जरूरी है, लेकिन विनम्रता ही हमें आंतरिक शांति तथा सुरक्षा देती है।
बता दें कि उनको 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया था तथा मरणोपरांत 1983 में भारत रत्न से नवाजा गया।






