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स्वदेशी आंदोलन के नायक बाबू गेनू सैद जिसे महज 22 साल की उम्र में अंग्रेजों ने ट्रक से कुचलकर मार डाला

  • By शुभम सोनडवले
Updated On: Dec 12, 2021 | 06:00 AM
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के बारे में अधिकांश लोग महात्मा गांधी, लाला लाजपत राय, सरदार पटेल जैसे महापुरुषों को ही याद करते हैं। हालांकि, हम उन पैदल सैनिकों को भूल जाते हैं जिसने भारतीय स्वतंत्रता में भी योगदान दिया था। ऐसा ही एक नायक हैं मुंबई का एक सूती मिल मजदूर संघ के बाबू गेनू सैद। आज उसकी 91वीं पुण्यतिथि है। बाबू गेनू सैद भारत के स्वतंत्रता-संग्राम सेनानी एवं क्रांतिकारी था। उसे भारत में स्वदेशी के लिए बलिदान होने वाला पहला व्यक्ति माना जाता है। उसने विदेशी निर्मित कपड़े के आयात के खिलाफ सक्रिय रूप से भाग लिया और विरोध प्रदर्शन किया था।

बाबू गेनू सैद का जन्म 1 जनवरी 1908 में पुणे के महांनगुले गाँव के एक गरीब परिवार में हुआ था। उसने सिर्फ केवल चौथी कक्षा तक पढ़ाई की थी। बाबू के माता-पिता उससे बहुत प्रेम करते थे। उसके अध्यापक गोपीनाथ पंत उसे रामायण, महाभारत और छत्रपति शिवाजी की कहानिया सुनाते थे। बाबू दस वर्ष का भी नहीं हुआ था कि उसके पिता की मृत्यु हो गई। अब परिवार का भार उसकी माँ के कंधो पर आ गया। बाबू भी उसकी सहायता करता था। बाबू की माँ छोटे-छोटे काम करती थी और उसका पालन पोषण नहीं कर पा रही थी। ऐसे में बाबू को मिल में एक मजदूर के रूप में रोजगार मिला।

बाबू औपनिवेशिक शासन के खिलाफ थे और राजनीतिक व्यक्तित्वों से गहराई से प्रेरित थे। बाबू पर महात्मा गांधी का सबसे अधिक प्रभाव था। लेकिन उसकी माँ बाबू का जल्दी से जल्दी विवाह करना चाहती थी। लेकिन बाबू देश की सेवा करना चाहता था इसलिए उसने विवाह करने से मना कर दिया और वह मुंबई चला गया। मुंबई में व “पाठक” के दल में शामिल हो गया। वह वडाला के नमक पर छापा मारने वाले स्वयंसेवकों के साथ हो गया। वह पकड़ा गया और उसे कठोर कारावास की शिक्षा हुई। इसके बाद जब वह जेल से छूटा तो अपनी माँ से मिलने गया। जहां उसकी माँ लोगो से उसके वीर पुत्र की प्रशंसा सुनकर बहुत प्रसन्न थी।

बाबू मुंबई फिर अपने दल से जुड़ गया। उसे विदेशी कपड़ो के बाहर धरना देने का काम सौंपा गया जो उसने बखूबी निभाया। उसने विदेशी निर्मित कपड़ों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम के विभिन्न विरोधों में सक्रिय रूप से भाग लिया। इस दौरान 12 दिसंबर 1930 को ब्रिटिश एजेंटों के कहने पर विदेशी कपड़ों के व्यापारियों ने एक ट्रक भरकर उसे सड़क पर निकाला। स्वयंसेवक इसके खिलाफ थे और ट्रक को रोकना चाहते थे। जिसके लिए एक के बाद एक 30 स्वयंसेवक लेट गए। हालांकि, पुलिस ने जैसे तैसे सभी को हटाकर ट्रक को निकलने दिया।

उधर, बाबू ने कोई ट्रक वहां से नहीं निकलने देने का निश्चय कर लिया था। वह ट्रक को रोकने के लिए सड़क पर लेट गया। पुलिस ने ट्रक चालक को बाबू को कुचलने के आदेश दे दिया। हालांकि, ड्राइवर ने कहा कि वह एक भारतीय है और उसके ऊपर से ट्रक नहीं दौड़ा सकता। जिसके बाद गुस्से में ब्रिटिश हवलदार ड्राइवर की सीट पर बैठ गया और ट्रक से बाबू के सिर को कुचलते हुए निकल गया। बाबू बुरी तरह घायल हो गया था और बेहोश भी हो गया था। उसे तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन उसने दम तोड़ दिया था। वह पुलिस की क्रूरता से शहीद हो गया किंतु वह लोकप्रिय हो गया। उसका नाम भारत के घर-घर में पहुंच गया और बाबू गेनू अमर रहे के नारे गूंजने लगे।

महानुगले गाँव में उसकी मूर्ति लगाई गई जहा वह शहीद हुआ था। उस गली का नाम गेनू स्ट्रीट रखा गया। कस्तूरबा गांधी उसके घर गई और उसकी माँ को पुरे देश की तरफ से सांत्वना दी। एक साधारण मजदूर के द्वारा दी गई शहादत को यह देश कभी नही भूल सकता है।

Today is the death anniversary of babu genu said hero of swadeshi movement whom the british crushed to death by a truck

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Published On: Dec 12, 2021 | 06:00 AM

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