तेलंगाना का कालेश्वरम प्रोजेक्ट, फोटो- सोशल मीडिया
Telanganas Kaleshwaram Project: कालेश्वरम परियोजना को बीआरएस सरकार ने तेलंगाना की “जीवनरेखा” बताया था। अब उसी पर गंभीर आरोप लग रहे हैं और मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी ने इसकी CBI जांच की घोषणा भी कर दी है।
कालेश्वरम परियोजना गोदावरी नदी पर आधारित एक बहुउद्देश्यीय लिफ्ट सिंचाई योजना है, जिसे बीआरएस सरकार ने 2016 में शुरू किया था। इसका उद्देश्य राज्य के 13 जिलों में सिंचाई, पेयजल और औद्योगिक जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराना था।
इस योजना के तहत करीब 1,800 किलोमीटर लंबा नहर नेटवर्क तैयार किया गया है। योजना का लक्ष्य गोदावरी नदी से 240 टीएमसी पानी स्टोर और वितरित करना है जिसमें से 169 टीएमसी सिंचाई, 30 टीएमसी हैदराबाद के लिए पेयजल, 16 टीएमसी उद्योगों और 10 टीएमसी रास्ते के गांवों को देने की योजना थी। बीआरएस के शासन में इसे दुनिया की सबसे बड़ी लिफ्ट सिंचाई योजनाओं में एक बताया गया और तत्कालीन मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव ने इसे ऐतिहासिक उपलब्धि कहा।
शुरुआत से ही यह परियोजना विवादों में रही। पहले इसका स्थान तुम्मिडीहट्टी तय किया गया था, जिसे बाद में मेडिगड्डा स्थानांतरित कर दिया गया। विरोधियों का आरोप है कि यह बदलाव तकनीकी कारणों से नहीं बल्कि वित्तीय लाभ के लिए किया गया। रिपोर्टों के अनुसार, बैराज की नींव कमजोर जमीन पर बनाई गई, जिसके चलते सुंडिला और अन्नाराम बैराज में दरारें आईं और एक बैराज धंस गया। केंद्रीय जल आयोग की रिपोर्ट और रिटायर्ड इंजीनियरों की चेतावनियों के बावजूद निर्माण कार्य तेज़ी से आगे बढ़ाया गया।
रेवंत रेड्डी ने विधानसभा में कहा कि इस प्रोजेक्ट में कई केंद्रीय और राज्य एजेंसियां शामिल हैं, इसलिए जांच का दायरा बड़ा है और उसे CBI को सौंपना जरूरी है। इसके पहले उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस पी.सी. घोष की अध्यक्षता में न्यायिक आयोग गठित किया था। आयोग ने 15 महीने में 110 से अधिक गवाहों से पूछताछ की, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री केसीआर और पूर्व मंत्री टी. हरीश राव भी शामिल हैं।
తుమ్మిడిహెట్టి నుండి మేడిగడ్డకు
ప్రాజెక్టు స్థలాన్ని మార్చడం వెనుక…
దోపిడీ ప్రణాళిక ఇమిడి ఉండి.#Medigadda pic.twitter.com/veI73DRan8— Revanth Reddy (@revanth_anumula) September 1, 2025
रिपोर्ट में गंभीर अनियमितताओं का उल्लेख किया गया, जिनमें परियोजना के स्थान बदलने, बिना उचित मंजूरी के निर्माण, वित्तीय गड़बड़ियां और तकनीकी लापरवाहियां शामिल हैं। आयोग ने यह भी कहा कि केसीआर को कानूनी रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है और आगे की कार्रवाई राज्य सरकार पर निर्भर है।
बीआरएस ने रिपोर्ट को राजनीति से प्रेरित बताया और विधानसभा से वॉकआउट कर दिया। उनका कहना है कि प्रोजेक्ट को सभी वैधानिक मंजूरी मिली थी और इसके लाभ स्पष्ट हैं। उनका आरोप है कि उन्हें अपनी बात रखने का समय तक नहीं दिया गया। बीआरएस के अनुसार, यह जांच लोगों को गुमराह करने और पूर्ववर्ती सरकार की छवि खराब करने की साजिश है। वहीं, रेड्डी सरकार का दावा है कि 49,835 करोड़ रुपये की कर्ज अदायगी में से 29,956 करोड़ सिर्फ ब्याज में चला गया, जो बीआरएस सरकार की कर्ज नीति की नाकामी को दर्शाता है।
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अब जब मामला सीबीआई तक पहुंच चुका है, तो आने वाले महीनों में कालेश्वरम प्रोजेक्ट से जुड़े कई बड़े नाम जांच के घेरे में आ सकते हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह जांच केवल राजनीतिक दबाव का हिस्सा है या वास्तव में किसी बड़े घोटाले की परतें खुलेंगी।