TASMAC पर ED की छापेमारी पर सुप्रीम कोर्ट ने सही नहीं बताया
चेन्नई: तमिलनाडु की शराब कंपनी तमिलनाडु राज्य विपणन निगम (TASMAC) पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) की छापेमारी को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि केंद्र की एजेंसी किसी राज्य सरकार द्वारा संचालित कंपनी पर इस तरह कैसे कार्रवाई कर सकती है? मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने ईडी की जांच पर रोक लगाते हुए साफ शब्दों में कहा कि एजेंसी अपनी सीमाएं लांघ रही है। इस टिप्पणी ने एक बार फिर संघीय ढांचे में केंद्र और राज्य के अधिकारों की सीमा को लेकर बहस छेड़ दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने मद्रास हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें ईडी को TASMAC के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच जारी रखने की अनुमति दी गई थी। अदालत ने कहा कि जब राज्य सरकार खुद इस मामले की जांच कर रही है, तो फिर केंद्रीय एजेंसी का दखल संघीय सिद्धांत का उल्लंघन है। कोर्ट ने ईडी को नोटिस जारी कर यह भी पूछा कि वह राज्य की एजेंसी पर किस आधार पर छापेमारी कर रही है, जबकि उसके पास इस कार्रवाई का कोई वैध आधार स्पष्ट नहीं है।
ईडी की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की तीखी प्रतिक्रिया
तमिलनाडु सरकार और राज्य विपणन निगम TASMAC की याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय की भूमिका पर सवाल उठाया। पीठ ने कहा कि यह मामला राज्य सरकार के अधिकार क्षेत्र का है और ईडी सीधे राज्य की संपत्ति में हस्तक्षेप नहीं कर सकती। वरिष्ठ अधिवक्ताओं कपिल सिब्बल और अमितानंद तिवारी की दलीलों पर विचार करते हुए कोर्ट ने माना कि राज्य सरकार 2014 से इस विषय में खुद 40 से अधिक एफआईआर दर्ज कर चुकी है। ऐसे में ईडी की सीधी छापेमारी संघीय ढांचे के खिलाफ है।
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TASMAC पर छापेमारी का कानूनी आधार सवालों में
ईडी की तरफ से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस. वी. राजू ने तर्क दिया कि यह मामला 1,000 करोड़ रुपये से अधिक के कथित भ्रष्टाचार से जुड़ा है, और इसलिए ईडी की कार्रवाई जायज है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस तर्क से संतुष्ट नहीं हुआ। अदालत ने स्पष्ट किया कि यह मामला राज्य सरकार की सीमा में आता है और एजेंसियों को अपनी संवैधानिक सीमाओं का सम्मान करना चाहिए। कोर्ट ने जांच पर तत्काल रोक लगाते हुए ईडी से अपना पक्ष स्पष्ट करने को कहा है।