सुप्रीम कोर्ट (फोटो-सोशल मीडिया)
नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को वक्फ एक्ट पर अंतरिम स्टे के फैसले को सुरक्षित रख लिया है। वक्फ एक्ट पर स्टे की मांग को लेकर कई याचिंकाएं दायर की गई थीं। भारत के मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने तीन दिनों तक अंतरिम आदेश पर केंद्र और अधिनियम को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं की दलीलें सुनीं। सुनवाई के दौरान, केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने गैर-मुसलमानों को वक्फ बनाने से रोकने वाले प्रावधान के बारे में तर्क दिया।
तुषार मेहता ने कहा कि केवल 2013 के संशोधन में गैर-मुसलमानों को ऐसे अधिकार दिए गए थे, लेकिन 1923 के कानून में उन्हें वक्फ बनाने की अनुमति नहीं थी, क्योंकि ऐसी चिंता थी कि इसका इस्तेमाल लेनदारों को धोखा देने के लिए एक उपकरण के रूप में किया जा सकता है। उन्होंने वक्फ बनाने के लिए पात्र होने के लिए पांच साल की प्रैक्टिस की शर्त का बचाव किया।
वक्फ बनाना वक्फ को दान देने से अलग
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वक्फ बनाना वक्फ को दान देने से अलग है, यही कारण है कि मुसलमानों के लिए पांच साल की प्रैक्टिस की आवश्यकता है ताकि वक्फ का इस्तेमाल किसी को धोखा देने के लिए न किया जा सके। उन्होंने कहा कि मान लीजिए कि मैं हिंदू हूं और मैं वक्फ के लिए दान करना चाहता हूं, तो दान वक्फ को किया जा सकता है। एक गैर-मुस्लिम को वक्फ बनाने की अनुमति कैसे दी जा सकती है? वह हमेशा वक्फ को दान कर सकता है।
आदिवासी आबादी पर वक्फ का प्रतिकूल प्रभाव
मेहता ने आगे तर्क दिया कि अधिनियम की धारा 3-E, जो अनुसूचित क्षेत्रों के अंतर्गत आने वाली भूमि पर वक्फ के निर्माण को रोकती है, अनुसूचित जनजातियों की सुरक्षा के लिए बनाई गई थी। उन्होंने कहा कि वक्फ का निर्माण अपरिवर्तनीय है और इससे कमजोर आदिवासी आबादी के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि वक्फ की आड़ में आदिवासी जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है। उन्होंने कहा, “आदिवासी संगठनों की दलीलें हैं कि उन्हें पीड़ित किया जा रहा है और वक्फ के नाम पर उनकी जमीनों पर कब्जा किया जा रहा है।”
भाजपा शासित 6 राज्य पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
हरियाणा सरकार और 2025 के वक्फ संशोधनों का समर्थन करने वाले एक आदिवासी संगठन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता रंजीत कुमार ने कहा कि राजस्थान में खनन उद्देश्यों के लिए दी गई 500 एकड़ भूमि पर वक्फ का दावा किया गया था। सीजेआई गवई ने मौखिक रूप से कहा कि वक्फ के पंजीकरण की आवश्यकता 1923 और 1954 के पिछले कानूनों के तहत रही है। इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं का एक समूह सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष दायर किया गया था, जिसमें कहा गया था कि यह मुस्लिम समुदाय के प्रति भेदभावपूर्ण है और उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। भारतीय जनता पार्टी शासित छह राज्यों ने भी संशोधन के समर्थन में मामले में सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया था।