शिवराज सिंह चौहान (डिजाइन फोटो)
नवभारत डिजिटल डेस्क: भारतीय राजनीति में कई ऐसे नेता हुए जिनके परिवार की कोई राजनैतिक पृष्ठभूमि नहीं थी, बावजूद इसके उन्होंने खुद के दम पर अपनी धाक जमाई वर्षों तक राज किया। आज हम मध्य प्रदेश के ऐसे ही एक नेता के बारे में आपको बताने जा रहे है जिन्होंने छात्र राजनीति से अपने करियर की शुरुआत की और 4 बार राज्य के मुखिया बन मध्यप्रदेश की कमान संभाली।
जी हां, आज हम बात कर है मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और देश के मौजूद कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की। शिवराज सिंह चौहान आज यानी 5 मार्च को अपना 66वां जन्मदिन मना रहे हैं। आइए जानते है उनके राजनीतिक करियर के बारे में…
सिहोर जिले के जैत गांव में 5 मार्च 1959 को प्रेम सिंह चौहान और सुंदरबाई चौहान के घर एक लड़के का जन्म हुआ नाम रखा गया शिवराज। शुरू से पढ़ाई में होनहार शिवराज अपने कुशल नेतृत्व के लिए भी जाने जाते थे। शिवराज सिंह चौहान सिर्फ 13 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी RSS से जुड़ गए। साल 1975 में वे मॉडल स्कूल छात्र के संघ के अध्यक्ष बने।
राजनीतिक करियर शुरू करने से पहले शिवराज को आरएसएस ने तैयार किया। शिवराज ने 70 के दशक की शुरुआत में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के साथ उन्होंने अपना राजनीति जीवन शुरू किया। अपनी वाक्पटुता और सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक मामलों के प्रति झुकाव के कारण, वे 1975 में लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचे और उन्हें मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के रूप में चुना गया।
शिवराज सिंह चौहान ने 1991 से 1992 तक अखिल भारतीय केशरिया वाहिनी का नेतृत्व किया। 31 साल की उम्र में भाजपा ने उन्हें बुधनी विधानसभा सीट से चुनावी मैदान में उतारा। उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी को 22,000 से अधिक मतों से हराया और विधानसभा पहुंच गए। चौहान को 1991 में भाजपा ने विदिशा संसदीय क्षेत्र से मैदान में उतारा और उन्होंने इसमें भी विजय प्राप्त की। वह सबसे कम उम्र के सांसदों में से एक बन गए और अगले वर्ष यानी 1992 में भारतीय जनता युवा मोर्चा के महासचिव बन गए।
इसके बाद वे लगातार पांच बार विदिशा से सांसद चुने गए। इस दौरान उन्होंने शहरी और ग्रामीण विकास, मानव संसाधन विकास, श्रम कल्याण और हिंदी सलाहकार समिति की कई लोकसभा समितियों में कार्य किया। 2005 में उन्हें मध्यप्रदेश भाजपा का अध्यक्ष बनाया गया।
2005 में, उन्हें भाजपा, मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में नामित किया गया और 29 नवंबर को राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में भी चुना गया। उन्होंने लगातार 2008 और 2013 के चुनावों में पार्टी को राज्य में तीन बार जीत दिलाई और राज्य के सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले सीएम बने। 2018 में, मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में, चौहान बहुमत हासिल करने में असफल रहे और सीएम की सीट से इस्तीफा दे दिया।
2003 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी जीती। उमा भारती को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन उनका सीएम बनना पार्टी के लिए असहज रहा। उमा भारती के विवादित बयानों से भाजपा आलाकमान नाराज था। इसी बीच 1994 में हुए हुबली दंगों के सिलसिले में उमा भारती के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी हो गया। इस कारण 8 महीने में ही उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
शिवराज सिंह चौहान (सोर्स: एक्स@ChouhanShivraj)
उमा भारती के बाद भाजपा ने बाबूलाल गौर को मध्य प्रदेश का सीएम बनाया। लेकिन बाबूलाल गौर के खिलाफ पार्टी के भीतर बगावत हो गई। इस बीच पार्टी को नया चेहरा तलाशना पड़ा और आखिरकार 29 नवंबर 2005 को शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बनाया गया।
शिवराज सिंह चौहान को जब मुख्यमंत्री के लिए चुना गया, तब वो लोकसभा के सांसद थे। जिस समय पार्टी बाबूलाल गौर की जगह नए चेहरे को लेकर मंथन कर रही थी, तब भी शिवराज का नाम दूर-दूर तक नहीं था। तब के भाजपा के दिग्गज नेता और रणनीतिकार प्रमोद महाजन ने शिवराज के नाम का प्रस्ताव रखा और तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने उन्हें चुनकर सबको चौंका दिया। इस तरह से शिवराज सिंह चौहान पहली बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
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मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद 2005 में शिवराज सिंह चौहान ने बुधनी विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ा और 30 हजार से ज्यादा वोटों के अंतर से जीत हासिल की। इसके बाद 2008 और 2013 में लगातार जीत हासिल कर दूसरी और तीसरी बार मुख्यमंत्री बने।
हालांकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा हार के बाद उन्हें सत्ता से हटना पड़ा था और कांग्रेस के कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बने। परंतु मात्र 15 महीने में ही शिवराज वापस सत्ता पर काबिज हो गए। मध्य प्रदेश की सियासत में कई दिन तक चली सियासी चालों और कांग्रेस विधायकों के दलबदल के बाद वे चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।