प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो: सोशल मीडिया
Rohingya Supreme Court Judgement: सुप्रीम कोर्ट ने रोहिंग्या को देश से निकाले जाने के आदेश के खिलाफ दायर याचिकाओं और शरणार्थी शिविरों में बुनियादी सुविधाएं देने से जुड़ी याचिकाओं को एक साथ लाते हुए सुनवाई आरंभ की है।
मामले पर सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एन. कोटिश्वर सिंह ने सुनवाई के दौरान चार प्रमुख सवालों को सामने रखा। जस्टिस सूर्यकांत ने इस मामले पर कहा, ‘पहला मुद्दा सरल है कि क्या वो शरणार्थी हैं या अवैध घुसपैठिए।’ रोहिंग्या शरणार्थियों से जुड़े मामलों पर बेंच ने कहा कि इन मामलों में कई जरूरी सवाल उठते हैं, जिन पर विचार करना होगा। अदालत ने ये चार बड़े सवाल उठाए हैं।
फिलहाल भारत में अनुमानित 40,000 रोहिंग्या बिना वैध दस्तावेजों के रह रहे हैं। इनमें से 14,000 यूएनएचसीआर के साथ पंजीकृत हैं। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि इन्हें म्यांमार वापस भेजना अंतरराष्ट्रीय कानूनों के नॉन-रिफाउलमेंट सिद्धांत का उल्लंघन होगा। इसके साथ ही कोर्ट ने ये भी पूछा कि जो रोहिंग्या हिरासत में नहीं हैं और शिविरों में रह रहे हैं क्या उनको शिक्षा, स्वास्थ्य और स्वच्छता जैसी मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं? रिपोर्ट्स की मानें तो कई शिविरों में स्थिति काफी दयनीय है।
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इस मामले में केंद्र सरकार का तर्क है कि भारत 1951 शरणार्थी समझौते का हिस्सा नहीं है इसलिए रोहिंग्या को शरणार्थी नहीं माना जा सकता। इसके उलट याचिकाकर्ता संविधान के अनुच्छेद 21 का हवाला देते हुए कहते हैं कि जीवन और गरिमा का अधिकार सभी को है नागरिक हों या नहीं। अदालत ने इस मामले को तीन भागों में बांट दिया है। पहला रोहिंग्याओं से जुड़ा तो दूसरा, रोहिंग्याओं से सीधे नहीं जुड़ा है। इसके साथ ही अदालत ने तीसरे को एक अलग ही मामला कहा है।