नेताओं की जमानत (कांस्पेट फोटो)
नवभारत डेस्क : अपने चुनाव के समय कई बार जमानत जब्त होने की चर्चाएं सुनी होंगी। आप यह भी जानते होंगे कि चुनाव (Elections) में केवल हारे हुए प्रत्याशियों के जमानत जब्त होती है, लेकिन आजादी के बाद हुए विधानसभा के चुनाव में एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला था, जब कांग्रेस पार्टी की एक प्रत्याशी के चुनाव जीतने के बाद भी उसकी जमानत जब्त हो गई थी, क्योंकि वह जमानत बचाने के लिए निर्धारित 1/6 फीसदी वोट पाने में असफल रहा था।
चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक अगर देखा जाए तो चुनाव में किसी उम्मीदवार को कुल पड़े वोटों का 1/6 फीसदी वोट हासिल नहीं करने पर उस उम्मीदवार की जमानत जब्त हो जाया करती है।
भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में कई तरह के चुनाव अक्सर होते रहते हैं। इसलिए अलग अलग चुनावों में अलग अलग जमानत राशि तय करके रखी गयी है। अगर कोई व्यक्ति अगर लोकसभा का चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसे चुनाव आयोग के पास 25 हजार रुपये जमानत राशि के रूप में जमा कराने होते हैं। इसके अलावा अगर कोई व्यक्ति विधानसभा का चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसे 10 हजार रुपये जमानत राशि के रूप में जमा कराने होते हैं। यही धनराशि चुनाव के दौरान कुल पड़े वोटों का 1/6 फीसदी वोट हासिल नहीं करने पर जब्त हो जाया करती है। इसको ही जमानत जब्त होना कहते हैं।
यह अजीबोगरीब मामला उत्तर प्रदेश में देखने को मिला था, जहां 1952 में आजमगढ़ की सगड़ी पूर्वी विधानसभा सीट पर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार बलदेव (Congress leader Baldev) जीत हासिल करने के बावजूद भी अपनी जमानत नहीं बचा पाए थे, लेकिन उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी शंभू नारायण को हरा दिया था।
इस चुनाव में इस विधानसभा क्षेत्र में कुल 83,438 मतदाता पंजीकृत थे, जिसमें से 32,378 मतदाताओं ने अपने मताधिकार का उपयोग किया, लेकिन चुनाव में कांग्रेस पार्टी के बलदेव उर्फ सत्यानंद को केवल 4969 वोट मिले, जबकि उनके विरोध में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ रहे शंभू नारायण को 4348 फोटो से संतोष करना पड़ा। इस तरह से बलदेव ने चुनाव में जीत तो हासिल की, लेकिन जमानत बचाने के लिए जरूरी मतों से 427 मत कम पाने की वजह से वह अपने जमानत नहीं बचा पाए थे।