लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी
नई दिल्ली: लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने समुद्री खनन को लेकर केंद्र सरकार के फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर तटीय इलाकों में खनन गतिविधियों को पर्यावरण और आजीविका के लिए गंभीर खतरा बताया। गांधी ने सरकार से इन टेंडरों को तुरंत रद्द करने की अपील की। उनका कहना है कि यह निर्णय बिना किसी कठोर वैज्ञानिक अध्ययन और स्थानीय मछुआरों से परामर्श के लिया गया, जिससे समुद्री जैव विविधता और तटीय समुदायों की आजीविका पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। उन्होंने समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर जोर दिया।
राहुल गांधी ने कोल्लम के तटीय इलाकों और ग्रेट निकोबार द्वीप के समुद्री जैव विविधता हॉटस्पॉट में खनन से होने वाले संभावित नुकसान पर भी चिंता व्यक्त की। उन्होंने केरल विश्वविद्यालय के एक अध्ययन का हवाला देते हुए कहा कि अपतटीय खनन से मछली प्रजनन पर विनाशकारी प्रभाव पड़ सकता है, जिससे स्थानीय मछुआरों की आजीविका खतरे में आ जाएगी। उन्होंने बताया कि कोल्लम का तट विशेष रूप से मछली प्रजनन के लिए महत्वपूर्ण है और यहां खनन की गतिविधियां समुद्री जीवन को बुरी तरह प्रभावित कर सकती हैं। ग्रेट निकोबार द्वीप का पारिस्थितिक महत्व भी वैश्विक स्तर पर मान्यता प्राप्त है और यहां किसी भी तरह की खनन गतिविधि अपूरणीय क्षति पहुंचा सकती है।
राहुल गांधी ने सरकार द्वारा 13 अपतटीय खनन ब्लॉकों के टेंडर जारी करने पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह निर्णय बिना किसी पर्यावरणीय मूल्यांकन और हितधारकों से चर्चा के लिया गया है। उन्होंने बताया कि इन ब्लॉकों में से तीन कोल्लम के तट पर स्थित हैं, जहां निर्माण रेत के लिए खनन की योजना बनाई गई है, जबकि अन्य तीन ग्रेट निकोबार द्वीप पर पॉलीमेटेलिक नोड्यूल के लिए निर्धारित किए गए हैं। समुद्री वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने इस खनन को लेकर गंभीर चेतावनी दी है कि इससे प्रवाल भित्तियों को नुकसान पहुंचेगा, मछलियों की आबादी घटेगी और समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र में असंतुलन पैदा होगा।
राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में स्पष्ट रूप से आग्रह किया कि अपतटीय खनन के लिए जारी निविदाओं (टेंडरों) को तत्काल रद्द किया जाए और आगे कोई भी निर्णय लेने से पहले कठोर वैज्ञानिक अध्ययन किए जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को विशेष रूप से मछुआरों और तटीय समुदायों के साथ गहन परामर्श करना चाहिए, क्योंकि उनकी आजीविका सीधे समुद्र के स्वास्थ्य से जुड़ी हुई है।
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उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भारत के तटीय पारिस्थितिकी तंत्र पहले से ही जलवायु परिवर्तन और चक्रवातों के बढ़ते प्रभावों से जूझ रहे हैं और ऐसे में बिना सोचे-समझे खनन की अनुमति देना संकट को और गहरा सकता है। उन्होंने सरकार से अपील की कि वह इस मुद्दे पर जल्द से जल्द पुनर्विचार करे और भविष्य में कोई भी बड़ा कदम उठाने से पहले समावेशी नीति अपनाए।
ऐजेंसी इनपुट के साथ