प्रतीकात्मक तस्वीर, फोटो - सोशल मीडिया
तिरुवनंतपुरम : केरल विधानसभा ने मंगलवार यानी 25 मार्च को निजी विश्वविद्यालय विधेयक को मंजूरी दे दी, जिससे राज्य में प्राइवेट यूनिवर्सिटीज के संचालन का रास्ता साफ हो गया है। बता दें, इस विधेयक को विषय समिति द्वारा जांच के बाद पेश किया गया था, लेकिन इसे पारित करने से पहले विपक्ष की ओर से तीखी बहस और गंभीर आपत्तियां सामने आईं।
राज्य की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने विधेयक का बचाव करते हुए कहा कि यह केरल के शिक्षा क्षेत्र के लिए एक प्रगतिशील कदम है। उन्होंने आश्वासन दिया कि निजी विश्वविद्यालयों में शैक्षणिक मानकों को बनाए रखने के लिए सख्त नियम लागू किए जाएंगे।
हालांकि, विपक्षी दलों ने कई संशोधन और चिंताएं उठाईं, खासकर फीस संरचना और प्रवेश नीतियों को लेकर। विपक्ष ने सिद्धांत रूप में विधेयक का विरोध नहीं किया, लेकिन इसकी कुछ खामियों पर गहरी नाराजगी जताई। विपक्ष के नेता वी.डी. सतीशन ने निजी विश्वविद्यालयों के सार्वजनिक विश्वविद्यालयों और कॉलेजों पर प्रभाव को लेकर सवाल उठाए।
उन्होंने कहा, “हम विधेयक का पूरी तरह विरोध नहीं करते, लेकिन हमें यह विश्लेषण करना होगा कि यह सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को कैसे प्रभावित करेगा। सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि केरल के शिक्षा क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कॉर्पोरेट शिक्षा एजेंसियों को निजी विश्वविद्यालय स्थापित करने का मौका मिले। साथ ही, सार्वजनिक विश्वविद्यालयों को प्राथमिकता दी जाए और निजी संस्थानों को जवाबदेही के बिना संचालित न होने दिया जाए।”
वरिष्ठ कांग्रेस नेता रमेश चेन्निथाला ने केरल से छात्रों के पलायन पर चिंता जताई और सवाल किया कि क्या यह विधेयक इस प्रवृत्ति को रोक पाएगा। उन्होंने कहा, “केरल में छात्र पलायन बड़े पैमाने पर हो रहा है। क्या यह विधेयक इसे रोकने में मदद करेगा? इसके लिए विस्तृत अध्ययन की जरूरत है। मौजूदा प्राइवेट कॉलेजों को विश्वविद्यालयों में बदलने से परिणाम नहीं मिलेंगे। सरकार को वैश्विक विश्वविद्यालयों को राज्य में परिसर स्थापित करने की संभावना तलाशनी चाहिए। 10 एकड़ जमीन और 25 करोड़ रुपये के निवेश की शर्तें ऊंची हैं, लेकिन हमें यह देखना होगा कि ये व्यावहारिक हैं या नहीं।”
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कांग्रेस नेताओं ने गहन जांच की मांग की, वहीं रिवॉल्यूशनरी मार्क्सिस्ट पार्टी (आरएमपी) की विधायक के.के. रेमा ने विधेयक का कड़ा विरोध करते हुए इसे पूरी तरह वापस लेने की मांग की। रेमा ने कहा, “यह विधेयक शिक्षा के व्यावसायीकरण को बढ़ावा देता है। इससे केवल धनी लोग ही उच्च शिक्षा ले पाएंगे। वही वामपंथी सरकार जो कभी स्ववित्तपोषित संस्थानों के खिलाफ थी, अब निजी विश्वविद्यालयों को बढ़ावा दे रही है। यह शिक्षा के निजीकरण की ओर कदम है।” विपक्ष की आपत्तियों के बावजूद, स्पीकर ए.एन. शमशीर ने विधेयक को ध्वनि मत से पारित कर दिया। अब यह विधेयक राज्यपाल की मंजूरी के बाद कानून बनेगा।
– एजेंसी इनपुट के साथ।