बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा आज भी होती है कि यदि उनको कोई पीएम मटेरियल बोल दे वह खुश हो जाते हैं। ऐसे दो बार मौके आए,
नीतीश कुमार (फोटो-सोशल मीडिया)
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दो बार प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गए। राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा आज भी होती है कि यदि उनको कोई पीएम मटेरियल बोल दे वह खुश हो जाते हैं। ऐसे दो बार मौके आए, जब वह प्रधानमंत्री बन सकते थे, पहली बार नरेंद्र मोदी की फील्डिंग उन्हें रेस से बाहर कर दिया और दूसरी बार उन्होंने स्वयं पलटी मार दी। परिणामस्वारूप तीसरी बार नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बन गए।
नीतीश कुमार ने 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले एक रणनीति तैयार की। उनकी मजबूत सियासी सूझबूझ से हार भाजपा की तय थी। लेकिन इंडिया गठबंधन के नेताओं की एक गलती की वजह से नीतीश कुमार ने पलटी मार दी। हालांकि इंडिया गठबंधन ने मजबूती से चुनाव लड़ा, लेकिन नीतीश के जाने से जगह खाली हुई उसकी भरपाई नहीं हो पाई। इसलिए नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बन गए। यदि सुशासन बाबू इंडिया गठबंधन में होते पीएम भी बन सकते थे।
पहली जब बार जब नीतीश कुमार चूके थे तब भी नरेंद्र मोदी की लॉटरी लग गई थी। दरअसल 2014 से पहले भी नीतीश कुमार एनडीए गठबंधन का हिस्सा थे। बिहार में उन्होंने अपना सियासी वर्चस्व बना लिया था। लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी सहित कई लोग नरेंद्र मोदी को पीएम पद का चेहरा बनाने से परहेज कर रहे थे। वहीं दूसरी तरफ नीतीश कुमार भी अपना दावा ठोक रहे थे। लेकिन राजनाथ सिंह ने नरेंद्र मोदी के नाम का ऐलान कर दिया।
जेपी के आंदोलन से उभरे लालू प्रसाद यादव व नीतीश कुमार कभी मित्र हुआ करते थे। दोनों ने एक दूसरे की राजनीतिक तौर पर खूब मदद भी की है। हालांकि राजनीति में कभी कोई किसी का परमानेंट दोस्त और दुश्मन नहीं होता है। यही वजह है कि नीतीश ने लालू प्रसाद यादव से दोस्ती और दुश्मनी बराबर निभाई है। लालू प्रसाद यादव को पहली बार मुख्यमंत्री बनाने में नीतीश कुमार का बड़ा योगदान रहा है। दरअसल पूर्व पीएम वीपी सिंह लालू प्रसाद को नहीं चाहते थे। वहीं देवी लाल लालू प्रसाद के पक्ष में थे। ऐसे में नीतीश कुमार ने पूर्व पीएम चंद्रशेखर सिंह से मदद ली और लालू प्रसाद सीएम बन गए।
समय बीतता गया लालू और नीतीश की राहें अलग हो गईं। इसके बाद अपने मित्र लालू की सरकार को उन्होंने जमकर कोसा। नीतीश कुमार ने नए सियासी शब्द जंगलराज को जन्म दिया। इसी जंगलराज की वजह से आज भी अभी राजद संघर्ष कर रही है। नीतीश कुमार ने पहली बार 1994 में जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई थी। उस समय जॉर्ज फर्नानडीज नीतीश कुमार के साथ थे। 90 के दशक में ही नीतीश कुमार पहली बार बीजेपी के साथ आए थे। नीतीश कुमार ने 2005 में पहली बार बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी।
लगभग 8 साल के बाद नीतीश कुमार ने पहली बार 2013 में पाला बदला था। उस समय उन्होंने भगवा पार्टी के साथ जेडीयू के 17 साल लंबे राजनीतिक गठबंधन को खत्म करने का फैसला किया था। उस समय नीतीश ने पीएम के रूप में नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का विरोध जताया था। नीतीश कुमार बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी को पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किए जाने से नाखुश थे।
2014 में, बीजेपी के प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतने के बाद, कुमार ने जेडीयू की हार की जिम्मेदारी ली। उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने जीतम राम मांझी को सीएम नियुक्त कर दिया। लालू यादव की राजद और कांग्रेस ने कुमार की जदयू का समर्थन किया और कुमार विधानसभा में बहुमत परीक्षण में सफल रहे। अंततः जदयू-कांग्रेस-राजद गठबंधन, महागठबंधन का गठन हुआ। गठबंधन ने कुमार को 2015 में राज्य चुनाव जीतने में मदद की। इससे लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के लिए राह खुली। इसके बाद तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने थे। इस चुनाव में राजद बड़े दल के रूप में थी।
सीबीआई की लालू यादव और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने के बाद उन्हें गठबंधन में बढ़त हासिल करने का एक और मौका मिला। कुमार ने तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगा। तेजस्वी का सीबीआई की चार्जशीट में भी था। हालांकि, लालू ने इनकार कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने 2017 में फिर से पलटी मारी और बीजेपी से हाथ मिला लिया।
कई मतभेदों के बाद, कुमार ने अगस्त 2022 में बीजेपी से नाता तोड़ लिया। 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने कहा था कि बीजेपी हमारा का अस्तित्व समाप्त करना चाहती है। इसके बाद महागठबंधन के साथ सरकार बना ली। इसके बाद यह सरकार 2024 के जनवरी तक चली। इसके बाद नतीश फिर से भाजपा के साथ आ गए।