संदर्भ चित्र (डिजाइन)
Nepal Violence: भारत का पड़ोसी देश नेपाल जल रहा है। जेन-जेड विद्रोह के बाद देश के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया है और नेपाली सेना से कमान संभाल ली है। इस बीच एक ऐसी चौंकानी वाली ख़बर सामने आई है जिसे सुनकर आपको भी यकीन करना मुश्किल होगा! लेकिन यह बात भारत के पूर्व राष्ट्रपति और दिवंगत राजनेता प्रणब मुखर्जी ने अपनी किताब में लिखी है।
वर्ष 1949-50 की बात है। चीन में साम्यवादी यानी कम्युनिस्ट क्रांति हो चुकी थी और उसने अपनी विस्तारवादी नीति के तहत 1950 तक तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। इसी दौरान चीन और भारत के बीच मौजूद एकमात्र हिंदू राष्ट्र नेपाल भी राजनीतिक अस्थिरता के दौर से गुजर रहा था। उस समय राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह नेपाल के शासक थे।
राजा त्रिभुवन बीर चीन के बढ़ते आक्रमण से चिंतित थे। जिसके चलते उन्होंने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को हिमालयी देश नेपाल का भारत में विलय करके उसे एक राज्य बनाने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन पंडित नेहरू ने ऐसा करने से इनकार कर दिया।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक “द प्रेसिडेंशियल इयर्स” में लिखा है कि नेपाल के राजा त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह ने यह प्रस्ताव नेहरू के सामने रखा था, लेकिन पंडित नेहरू ने यह कहते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसा ही रहना चाहिए।
प्रणब दा ने अपनी किताब के ग्यारहवें चैप्टर ‘माई प्राइम मिनिस्टर: डिफरेंट स्टाइल्स, डिफरेंट टेम्परामेंट्स’ में लिखा है, “अगर नेहरू की जगह इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री होतीं, तो शायद उन्होंने इस मौके का फायदा उठाया होता, जैसा उन्होंने सिक्किम के मामले में किया था।”
जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी व प्रणब मुखर्जी की किताब (सोर्स- सोशल मीडिया)
उन्होंने यह भी लिखा, “हर प्रधानमंत्री की अपनी कार्यशैली होती है। लाल बहादुर शास्त्री ने नेहरू से बिल्कुल अलग दृष्टिकोण अपनाया था। प्रधानमंत्री, भले ही वे एक ही पार्टी के हों, विदेश नीति, सुरक्षा और आंतरिक प्रशासन जैसे मुद्दों पर अलग-अलग धारणाएं रख सकते हैं।”
प्रणब मुखर्जी ने आगे लिखा है कि पंडित नेहरू ने नेपाल के मुद्दे पर कूटनीतिक दृष्टिकोण अपनाकर काम किया था। वे लिखते हैं, “नेपाल में राणाओं के शासन की जगह राजतंत्र ने ले ली, जबकि पंडित जवाहरलाल नेहरू वहां भी लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था चाहते थे।”
किताब में लिखा है कि नेहरू ने तब राजा त्रिभुवन से कहा था कि नेपाल एक स्वतंत्र राष्ट्र है और उसे ऐसा ही रहना चाहिए। हालांकि, कुछ स्रोतों और इतिहासकारों के अनुसार, इस दावे की प्रामाणिकता पर सवाल उठाए गए हैं और इसे नेहरू की छवि खराब करने के उद्देश्य से फैलाई गई अफवाह बताया गया है।
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आपको बता दें कि 1846 से 1951 तक नेपाल पर राणा शासकों का शासन रहा। इस दौरान नेपाल पूरी दुनिया से कटा रहा। 1949 में जब नेपाल के पड़ोसी देश चीन में साम्यवादी क्रांति हुई, तो यहां भी सत्ता परिवर्तन हुआ। उस समय तक त्रिभुवन बीर बिक्रम शाह विदेश में थे। 1951 में जब वे नेपाल लौटे, तो उन्होंने वहां संवैधानिक राजतंत्र की प्रथा शुरू की।