कर्नाटक विधानसभा की तस्वीर
बेंगलुरु: कर्नाटक विधानसभा में शुक्रवार को जबरदस्त हंगामा हुआ। हालांकि, इस गहमागहमी के बीच अल्पसंख्यकों के लिए सरकारी ठेकों में चार फीसदी का आरक्षण देने वाला बिल पास हो गया है। इसके साथ ही मंत्रियों और विधायकों के वेतन से जुड़ा बिल भी पारित हो गया है। सदन में जारी हंगामे के बीच विधानसभा की कार्यवाही को 01:30 बजे तक स्थगित कर दी गई।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री की सैलरी को 75,000 रुपये से बढ़कर 1.5 लाख रुपये करने का प्रस्ताव है। वहीं मंत्रियों की सैलरी 60,000 रुपये से बढ़कर 1.25 लाख रुपये कर दिया जाएगा। बताया जा रहा है कि विधायकों की सैलरी 40,000 से बढ़ाकर 80,000 रुपये करने का प्रस्ताव है।
भाजपा विधायकों ने चार फीसदी वाले कोटा विधेयक की प्रतियों फाड़कर उसे स्पीकर की तरफ फेंकी। बीजेपी इस विधेयक को ‘असंवैधानिक’ बताकर इसका विरोध कर रही है। पार्टी का कहना है कि वो इस विधेयक को कानूनी रूप से चुनौती देगी। विधेयक को पारित किए जाने के खिलाफ भाजपा विधायक नारेबाजी करते हुए स्पीकर के तरफ आए। दूसरी तरफ कांग्रेस का कहना है कि यह विधेयक अल्पसंख्यक समुदाय को सामाजिक न्याय और आर्थिक अवसर देगा।
वहीं, पूर्व विधायकों का मेडिकल भत्ता 5,000 रुपये से बढ़कर 20,000 रुपये किया जाएगा। क्षेत्रीय यात्रा भत्ता 60,000 रुपये से बढ़कर 80,000 रुपये कर दिया जाएगा। इसके लिए ट्रेन और हवाई टिकट का सालाना भत्ता 2.5 लाख रुपये से बढ़कर 3.5 लाख रुपये करने का प्रस्ताव है।
कर्नाटक के मंत्री केएन राजन्ना के एक विस्फोटक दावे से कर्नाटक की राजनीति में भूचाल आ गया है। सहकारिता मंत्री केएन राजन्ना ने सदन को बताया कि राज्य में 48 लोग हनी ट्रैप के शिकार हुए हैं और उनके अश्लील वीडियो प्रसारित किए गए हैं। राजन्ना ने कहा कि लोग कहते हैं कि कर्नाटक में सीडी (कॉम्पैक्ट डिस्क) और पेन ड्राइव बनाने वाली फैक्ट्री है। मुझे पता चला है कि राज्य में 48 लोगों की सीडी और पेन ड्राइव उपलब्ध हैं। यह नेटवर्क पूरे भारत में फैला हुआ है और कई केंद्रीय मंत्री भी इसके जाल में फंस चुके हैं।
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कर्नाटक के सीएम ने कहा कि ऐसे मामले में किसी को भी बचाने का सवाल नहीं उठता। कानून के मुताबिक दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। गृह मंत्री ने जवाब दिया कि अगर राजन्ना ने शिकायत की है तो उच्च स्तरीय जांच होगी। राजन्ना ने किसी का नाम नहीं लिया। अगर उन्होंने किसी का नाम लिया होता तो कार्रवाई हो सकती थी। मामले में किसी को बचाने का सवाल ही नहीं उठता।