एमके स्टालिन और मोहन भागवत (फोटो- सोशल मीडिया)
चेन्नई: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने मंगलवार को राष्ट्रीय शिक्षा नीति को ‘‘विनाशकारी नागपुर योजना” करार दिया और दोहराया कि राज्य इसे स्वीकार नहीं करेगा, भले ही केंद्र सरकार 10,000 करोड़ रुपये प्रदान करे। स्टालिन ने कहा कि आपने टेलीविजन पर संसदीय कार्यवाही देखी होगी। वह अहंकार से कह रहे हैं कि तमिलनाडु को 2,000 करोड़ रुपये तभी दिए जाएंगे, जब हिंदी और संस्कृत को स्वीकार किया जाएगा। कौन? वह केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान थे।
राज्य राष्ट्रीय शिक्षा नीति का विरोध कर रहा है क्योंकि यह तमिलनाडु में शिक्षा के विकास को पूरी तरह से नष्ट कर देगा। मुख्यमंत्री ने आरोप लगाया,‘एनईपी में विद्यार्थियों को शिक्षा के दायरे में लाने के बजाय, उन्हें शिक्षा से दूर करने की कार्ययोजना बनाई गई है।
उन्होंने शिक्षा के मामले में केंद्र सरकार के प्रभुत्व को स्थापित करने वाले इस एनईपी की आलोचना की और उसका विरोध करने के कई कारण गिनाए। मुख्यमंत्री ने कहा कि शिक्षा में सांप्रदायिकता का प्रवेश, शिक्षा का निजीकरण, ऐसी स्थिति पैदा करना जिसमें केवल अमीर लोग ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकें। छोटे बच्चों के लिए भी सार्वजनिक परीक्षा, कला, विज्ञान और इंजीनियरिंग पाठ्यक्रमों के लिए नीट जैसी प्रवेश परीक्षा आदि इसके विरोध के कारणों में हैं। स्टालिन ने कहा कि इन सभी कारकों पर विचार करने के बाद ही तमिलनाडु इस बात पर अड़ा है कि वह एनईपी को स्वीकार नहीं करेगा। प्रधान ने एनईपी को स्वीकार करने के लिए राज्य को ब्लैकमेल किया। उन्होंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि तमिलनाडु इसे स्वीकार नहीं करेगा।
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बता दें कि देश में प्रस्तावित 2026 के परिसीमन और शिक्षा नीती में 3 भाषा की अनिवर्यता को लेकर सियासत गर्माई हुई है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने केंद्र की भाजपा सरकार पर हिंदी थोपने आरोप लगा रहे हैं। इसके अलावा 2026 के परिसीमन के जरिए नॉन हिंदी स्टेट्स को हासिए पर ढाकेलने की बात कह रहे हैं। अब कांग्रेस पार्टी भी खुल कर मैदान में उतर गई है।