
नवभारत डिजिटल डेस्क: जंगल में हर तरह के जानवर होते हैं। कुछ शाकाहारी तो कुछ मांसाहारी होते हैं। मांसाहारी जानवरों की बात करें तो जंगल के राजा शेर की याद सबसे पहले आ जाती है। ये जानवरों के साथ-साथ मौका मिलने पर इंसान को भी मारने से नहीं डरते। एक ऐसी ही बाघिन (Man Eaters of Kumaon) के बारे में हम आपको आज बताते हैं, जिसने एक दो नहीं बल्कि 436 लोगों की जान ली थी। इस बाघिन का खौफ इतना था कि दिन में भी लोग अपने घर से बाहर निकलने से डरते थे। इसे मारने के लिए सेना की मदद लेनी पड़ी लेकिन उसे कोई मार नहीं पाया। इस खौफनाक बाघिन को मारने के लिए बड़े-बड़े शिकारी भी आये थे।

बाघिन का आतंक
नेपाल के रुपल गांव से शुरू हुआ था आदमखोर बाघिन का आतंक, दरअसल नेपाल के रूपल गांव के आसपास के इलाकों में एक आदमखोर बाघिन का आतंक तेजी से बढ़ने लगा था। वो छोटे बच्चे, महिला और पुरुषों को अपना शिकार बनाती थी। देखते ही देखते जब आंकड़ा दो सौ के पास पहुंचा तो उसका शिकार करने के लिए नेपाली सेना भेजी गई। लेकिन नेपाली सेना भी उस बाघिन को नहीं मार पाई। नेपाली सेना के ऑपरेशन के कारण आदमखोर बाघिन नेपाल की सीमा लांघ कर भारत में उत्तराखंड के चंपावत में पहुंच गई। फिर चंपावत इलाके से रोज-रोज यह खबर आने लगी कि एक बाघिन इंसानों को अपना शिकार बना रही है। आलम ऐसा था कि लोग डर के कारण दिन में भी अपना दरवाजा बंद कर के रहते थे। स्थानीय लोग उसे चंपावत की शैतान (Champawat Ki Shaitan) कहकर पुकारते थे।

ब्रिटिश हुकूमत ने जिम कॉर्बेट को सौंपी जिम्मेदारी
उस वक्त की ब्रिटिश सरकार को जब आदमखोर बाघिन के बारे में पता चला तो उन्होंने पहले गोरखा सैनिकों को भेजा। जिसके बाद कुछ समय के लिए चंपावत में शांति तो पसरी लेकिन दूसरे इलाकों में बाघिन का आतंक तेजी से फैलने लगा। फिर ब्रिटिश सरकार ने नैनीताल से जिम कॉर्बेट को बुलाया और उन्हें बाघिन से निपटने की जिम्मेदारी दी। बता दें कि जिम कॉर्बेट अपने समय के सबसे मशहूर शिकारी थे। लेकिन इस शिकार के लिए उन्होंने यह शर्त रखी कि उनके अलावा कोई दूसरा शिकारी जंगल में नहीं जाएगा। जिम कॉर्बेट ने मैन-ईटर्स ऑफ कुमाऊं नामक अपनी किताब में इस बाघिन का जिक्र किया है।
कुमाऊँ की आदमखोर के साथ जिम कॉर्बेट
बाघिन क्यों बनी आदमखोर
कई बार निशानों का पीछा करते करते वो आदमखोर बाघिन के पास पहुंचे लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिल पाई। इसके लिए कुछ महीने इंताजर करना पड़ा और फिर जिम कॉर्बेट ने उस आदमखोर बाघिन को साल 1911 में मार दिया। जिसके बाद लोगों ने चैन की सांस ली। शिकार के बाद जब जिम कॉर्बेट ने उस बाघिन का निरक्षण किया तो पाया कि उसके जबड़े पर पहले से गोली लगी थी। जिसके कारण वो जानवरों का शिकार नहीं कर पाती थी। कहतें है घायल शेर और भी खतरनाक होता है। यही इस बाघिन के साथ भी हुआ था। किसी शिकारी से घायल होने के बाद उसने इंसानों से बदला लेना शुरू कर दिया था। एक के बाद एक उसने 436 लोगों की जान ली। इसका नाम गिनीज बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज है। शिकारी जिम कॉर्बेट के नाम पर एक नेशनल पार्क बनाया गया है। जो उत्तराखंड के नैनीताल जिले के रामनगर इलाके में है।






