केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल (फोटो- सोशल मीडिया)
Parliament Session: केंद्र सरकार ने गुरुवार को राज्यसभा में बताया कि संविधान की प्रस्तावना में आपातकाल के समय जोड़े गए ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्दों पर दुबारा से विचार करने या उन्हें हटाने का कोई भी इरादा नहीं है। सदन को यह भी बताया गया कि सरकार ने संविधान की प्रस्तावना से इन दोनों शब्दों को हटाने के लिए कोई औपचारिक कानूनी या संवैधानिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है।
इस पर एक लिखित जबाब में, देश के कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि इन पर कुछ सार्वजनिक या राजनीतिक विषयो में इस पर चर्चा या बहस हो सकती है, लेकिन सरकार ने इन शब्दों पर संशोधन के संबंध में किसी भी तरह का औपचारिक निर्णय या प्रस्ताव की कोई घोषणा नहीं की है।
मंत्री ने जोर देकर कहा, “सरकार का आधिकारिक रुख यह है कि संविधान की प्रस्तावना से ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्दों पर पुनर्विचार करने या उन्हें हटाने की कोई योजना या इरादा नहीं है। प्रस्तावना में संशोधन संबंधी किसी भी चर्चा के लिए गहन विचार-विमर्श और व्यापक सहमति की आवश्यकता होगी, लेकिन अभी तक सरकार ने इन प्रावधानों को बदलने के लिए कोई औपचारिक प्रक्रिया शुरू नहीं की है।”
उन्होंने बताया कि नवंबर 2024 में, सर्वोच्च न्यायालय ने 1976 के संशोधन (42वां संविधान संशोधन) को चुनौती देने वाली याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था, और इस बात की पुष्टि की थी कि संविधान में संशोधन करने की संसद की शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि भारतीय संदर्भ में “समाजवाद” एक कल्याणकारी राज्य का प्रतीक है और निजी क्षेत्र के विकास में बाधा नहीं डालता, जबकि “धर्मनिरपेक्षता” संविधान के मूल ढांचे का एक अभिन्न अंग है।
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कुछ सामाजिक संगठनों के अधिकारियों द्वारा माहौल बना दिया गया, कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि कुछ समूह अपनी राय व्यक्त कर रहे होंगे या इन शब्दों को लेकर दुबारा बिचार कीवकालत कर रहे होंगे। उन्होंने कहा, “ऐसी गतिविधियों से मुद्दे पर सार्वजनिक चर्चा या माहौल बन सकता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि सरकार के आधिकारिक रुख या कार्रवाई को प्रभावित करे।”