राजीव चंद्रशेखर (सोर्स- सोशल मीडिया)
तिरुवनंतपुरम: केरल में भारतीय जनता पार्टी ने राजीव चंद्रशेखर को प्रदेश अध्यक्ष बना दिया है। केरल में पार्टी के संगठनात्मक चुनावों के प्रभारी प्रह्लाद जोशी ने सोमवार को तिरुवनंतपुरम में आयोजित भाजपा राज्य परिषद की बैठक के दौरान यह घोषणा की। सीनियर भाजपा नेता प्रकाश जावड़ेकर पार्टी की कोर कमेटी की बैठक में राजीव चंद्रशेखर की नियुक्ति का फैसला रखा।
रविवार को राजीव चंद्रशेखर ने बीजेपी के प्रमुख नेताओं की मौजूदगी में इस पद के लिए अपना नामांकन पत्र दाखिल किया। चंद्रशेखर के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद आपके मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि लोकसभा चुनाव में हार और केंद्रीय मंत्री का पद देने के बावजूद पार्टी ने उन्हें राज्य की कमान क्यों सौंपी है। तो चलिए इसका जवाब तलाशने की कोशिश करते हैं।
आपको बता दें कि केरल में लंबे समय के बाद बीजेपी ने 2024 के लोकसभा चुनाव में एक सीट जीती है। इसके बाद से ही बीजेपी राज्य में अपनी मौजूदगी बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा वोटों का फायदा उठाना और हिंदू-ईसाई वोट बैंक को एकजुट करना है।
पिछले साल हुए लोकसभा चुनाव में राजीव चंद्रशेखर केरल की तिरुवनंतपुरम सीट से मैदान में थे। उन्होंने तीन बार के सांसद और कांग्रेस नेता शशि थरूर को कड़ी टक्कर दी थी। राजीव चंद्रशेखर करीबी मुकाबले में शशि थरूर से 16,000 वोटों के अंतर से हार गए थे। इस सीट पर उनके प्रदर्शन ने भाजपा को काफी प्रभावित किया। दो महीने के भीतर ही उन्होंने इस सीट पर भाजपा के लिए काफी सकारात्मक माहौल बना दिया था।
राजीव चंद्रशेखर जाति से नायर हैं। पार्टी को उम्मीद है कि वे राज्य में उच्च जाति के हिंदू वोटों को एकजुट करेंगे और एझावा समुदाय के प्रमुख नेता वेल्लापल्ली नटेसन और परिवार के साथ उनके मधुर संबंधों के कारण वे भारत धर्म जन सेना (बीडीजेएस) के साथ भाजपा के गठबंधन को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। केरल में ईसाई और मुस्लिम समुदायों के बीच बढ़ती दरार के कारण भाजपा एक ऐसे नेता की तलाश में थी जो ईसाई समुदाय को पार्टी की ओर आकर्षित कर सके।
केरल में ईसाई समुदाय, जो लगभग 19 प्रतिशत है, पारंपरिक रूप से कांग्रेस का मतदाता माना जाता है। कथित तौर पर, कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) और सीपीआई (एम) के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) दोनों ईसाई समुदाय की चिंताओं को नजरअंदाज कर रहे हैं, जबकि मुस्लिम समुदाय के बढ़ते प्रभाव के कारण ईसाई काफी परेशान हैं। वहीं, इनके बीच चंद्रशेखर की ठीक-ठाक पकड़ है।
केरल में राजीव चंद्रशेखर के लिए सबसे बड़ी चुनौती अक्टूबर में होने वाले स्थानीय निकाय चुनाव होंगे, जहां भाजपा अधिक से अधिक नगर निगमों में जीत दर्ज करना चाहती है। उनसे तिरुवनंतपुरम नगर निगम में भाजपा के प्रदर्शन पर ध्यान केंद्रित करने की उम्मीद है, और वहां जीत से नेमोम और कझाकूटम विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी के प्रदर्शन पर असर पड़ सकता है, जहां पार्टी का अच्छा खासा समर्थन माना जाता है।
देश की अन्य सभी बड़ी ख़बरों को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
हालांकि, सूत्रों का यह भी कहना है कि केरल भाजपा में गुटबाजी भी चंद्रशेखर के लिए चुनौती हो सकती है, क्योंकि इसका एक बड़ा वर्ग उन्हें “बाहरी” मानता है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि उन्हें नेताओं और कार्यकर्ताओं को विश्वास में लेने और लोगों को एकजुट रखने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। भाजपा सूत्रों ने कहा है कि पार्टी केरल में भी अपनी चुनावी रणनीति को दोहराना चाहती है।
भाजपा नेताओं ने कहा कि चंद्रशेखर केरल के सफेदपोश नेताओं के विपरीत एक नया चेहरा होंगे और अपनी टेक्नोक्रेट-उद्यमी छवि के साथ, केरल के शिक्षित युवाओं को पार्टी की ओर आकर्षित कर सकते हैं। उनके बारे में आरएसएस विचारक और भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय पदाधिकारी बालाशंकर ने कहा है कि चंद्रशेखर व्यापक रूप से स्वीकार्य हैं। वे पारंपरिक राजनीतिक व्यक्तित्व से अलग एक नया बदलाव हैं और एक सफल टेक्नोक्रेट-उद्यमी के साथ-साथ एक अनुभवी राजनेता के रूप में भी सम्मानित और प्रसिद्ध हैं।