समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल
नई दिल्ली : वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार कर रही संसद की संयुक्त समिति में शामिल विपक्षी दलों के सदस्य समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। कहा जा रहा है कि अध्यक्ष के कथित ‘एकतरफा फैसलों’ से नाराज सदस्यों ने कई शिकायतें की हैं और उन्हें तैयारी के लिए पूरा समय नहीं दिए जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि अध्यक्ष समिति की पूरी प्रक्रिया को ‘ध्वस्त’ कर रहे हैं।
बताया जा रहा है कि समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल के कामकाज के तरीके को लेकर अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला से मुलाकात कर सकते हैं। विपक्षी सदस्यों ने बिरला के नाम लिखे पत्र में यह दावा भी किया कि समिति की कार्यवाइयों में उनको अनसुना किया जाता रहा है ऐसे में उनके पास इस समिति से खुद को अलग करने के लिए मजबूर होने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं बचता है।
विपक्ष से जुड़े सूत्रों का कहना था कि सारे नाराज सदस्य एकजुट होकर मंगलवार को स्पीकर ओम बिडला से मिलकर समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल के खिलाफ की जा रही शिकायतों से अवगत करा सकते हैं।
इन सांसदों में द्रमुक सांसद ए राजा, कांग्रेस के मोहम्मद जावेद और इमरान मसूद, एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी, आम आदमी पार्टी के संजय सिंह और तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी सहित विपक्षी सदस्यों ने लोकसभा अध्यक्ष के नाम यह संयुक्त पत्र लिखा है। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के अनुभवी सांसद पाल पर आरोप लगाया कि समिति के अध्यक्ष ने बैठकों की तारीखें तय करने और कभी-कभी लगातार तीन दिनों तक बैठकें आयोजित करने और समिति के समक्ष किसे बुलाया जाए, यह तय करने में एकतरफा निर्णय ले लिया करते हैं। उन्होंने कहा कि सांसदों के लिए बिना तैयारी के बातचीत करना व्यावहारिक रूप से संभव नहीं है। ऐसे में समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल को उचित निर्देश दिया जाना चाहिए।
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विपक्षी सदस्यों ने कहा कि समिति को उचित प्रक्रिया की अनदेखी करते हुए प्रस्तावित कानून को सरकार की इच्छानुसार पारित कराने के माध्यम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। कई मुद्दों पर विपक्षी सदस्यों के लगातार विरोध के कारण समिति की कार्यवाही बाधित हुई है, जबकि भाजपा सदस्यों ने उन पर जानबूझकर इसके काम को बाधित करने की कोशिश करने का आरोप लगाया है।
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हालांकि समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने इस आरोप को खारिज कर दिया है कि उन्होंने विपक्षी सदस्यों को अपने विचार व्यक्त करने की अनुमति नहीं दी। उनका कहना था कि उन्होंने सुनिश्चित किया है कि हर किसी की बात को सुना जाए और हर किसी को मौका मिले।