
लड़ाकू विमान। इमेज-सोशल मीडिया
Radar Absorbent Material: भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने बेंगलुरु के एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एस्टेब्लिशमेंट (ADE) कॉम्प्लेक्स में भारत की पहली स्वदेशी बिस्टेटिक रडार क्रॉस सेक्शन मेजरमेंट सुविधा का काम लगभग पूरा कर लिया है। यह लैब 5वीं पीढ़ी के विमानों जैसे- एडवांस मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (AMCA) को रडार की नजरों से पूरी तरह बचाने वाली तकनीक को परखने का काम करेगी। अब भारत को अपने लड़ाकू विमानों के टेस्ट के लिए रूस या फ्रांस पर निर्भर नहीं रहना होगा।
अभी भारत के पास जो लैब थीं, वे पुराने तरीके से काम करती थीं। रडार जहां से सिग्नल भेजता था, वहीं से वापस आने वाले सिग्नल को मापता था, लेकिन अब आधुनिक रडार बहुत चालाक हैं। वे अलग-अलग कोणों से विमान को पकड़ लेते हैं। डीआरडीओ की यह नई बिस्टेटिक सुविधा बिल्कुल असली युद्ध जैसा माहौल बनाकर टेस्टिंग करेगी। इसमें सिग्नल भेजने वाला और उसे पकड़ने वाला रिसीवर एक-दूसरे से काफी दूर होते हैं। इससे वैज्ञानिकों को पता चलेगा कि क्या हमारा विमान साइड या पीछे से रडार की पकड़ में आ रहा या नहीं। यह सुविधा भारत के स्टील्थ विमानों, ड्रोनों और समुद्री जहाजों के लिए रामबाण साबित होगी।
बेंगलुरु की इस लैब में विमानों पर चढ़ाई जाने वाली खास कोटिंग (RAM-Radar Absorbent Material) का इम्तिहान लिया जाएगा, जिससे वह हर तरह के रडार वीएचएफ से एक्स-बैंड तक को आसानी से धोखा दे सके। इस लैब में टेस्टिंग का तरीका बहुत कड़ा और वैज्ञानिक है। सबसे पहले विमान के नाक, पंखों के किनारे और इंजन के हिस्सों पर खास तरह की गायब करने वाली कोटिंग चढ़ाई जाती है। इसे डीआरडीओ की कानपुर लैब ने विकसित किया है।
टेस्ट वाले हिस्से को एक चैंबर में रखकर -55°C से लेकर 80°C के बीच जांच की जाती है। इसके साथ ही नमी, नमक और रेत वाली हवा में भी इसे चेक किया जाता है, जिससे पता चले सके कि यह कोटिंग वर्षों तक टिकेगी या नहीं। ऐसे में एक बहुत पावरफुल सिस्टम इस पर हर तरह की रडार तरंगें छोड़ता है। चाहे वह पुराने या आधुनिक सिस्टम के रडार हों, यह लैब हर फ्रीक्वेंसी VHF से 40 GHz तक टेस्ट करती है।
यह तकनीक दुनिया के उन चुनिंदा देशों में भारत को खड़ा करेगी, जिनके पास स्टील्थ लैब है। इसमें रिसीवर को 120 मीटर की दूरी पर अलग-अलग टावरों पर लगाया जाता है। यह उन गुप्त सिग्नल को पकड़ लेता है, जिन्हें पुराने सिस्टम नहीं देख पाते थे। जब विमान मैक 1.8 (आवाज से लगभग दोगुनी) की रफ्तार से उड़ता है तो उसकी बॉडी फैलती और सिकुड़ती है। यह लैब टेस्ट करती है कि उस तनाव में कोटिंग फट या उखड़ तो नहीं रही। ऐसे में जब कंप्यूटर से निकलने वाली 2डी और 3डी फोटो से वैज्ञानिक यह देख सकते हैं कि विमान का कौन-सा कोना रडार को सिग्नल भेज रहा, ताकि उसे और बेहतर बनाया जा सके।
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फिलहाल भारत को अपने स्टील्थ प्रोजेक्ट्स जैसे-AMCA और बड़े ड्रोन के लिए फ्रांस और रूस की लैब का सहारा लेना पड़ता था। दूसरा विकल्प कंप्यूटर मॉडलिंग पर भरोसा करना था। अब भारत अपनी तकनीक को पूरी तरह गुप्त रख पाएगा और बहुत तेजी से सुधार कर सकेगा। सूत्रों के अनुसार, AMCA Mk1 के इंजन वाले हिस्से पर किए टेस्ट में भारत को बहुत जबरदस्त सफलता मिली है। भारत की कोटिंग अब अमेरिका और चीन की कोटिंग के बराबर टक्कर दे रही।






