
मेधा पाटकर व वीके सक्सेना (डिजाइन फोटो)
नई दिल्ली: दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को मानहानि के मामले में 5 महीने कैद और 10 लाख रुपए जुर्माने की सजा सुनाई है। यह मामला सन 2001 में दिल्ली के राज्यपाल वीके सक्सेना ने दर्ज करवाया था। वीके सक्सेना तब गुजरात के अहमदाबाद में एक एनजीओ चलाते थे।
मेधा पाटकर को लेकर आए साकेत कोर्ट के फैसले के बाद आप भी यह सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या कुछ हुआ था जिसकी वजह से मेधा पाटकर जैसी समाजिक कार्यकर्ता को भी सजा सुना दी गई। अगर हां, तो इसकी पूरी दास्तान हम आपको बयां करते हैं।
मेधा पाटकर बनाम वीके सक्सेना के बीच मुकदमे बाजी का दौर साल 2000 में शुरू हुआ था। तब पहल पाटकर की तरफ से की गई थी। मेधा पाटकर ने वीके सक्सेना के विरुद्ध विज्ञापनों को प्रकाशित करने के लिए मुकदमा दायर किया था। इस मुकदमे मे सोशल एक्टिविस्ट मेधा पाटकर ने दावा किया था कि ये विज्ञापन उनके और नेशनल ब्रॉडकास्टिंग एक्ट के लिए अपमान जनक है।
मेधा पाटकर के इस मुकदमे के जवाब में वीके सक्सेना ने उनके ख़िलाफ डिफेमेशन के दो मुकदमे दायर किए। पहले मामले में कहा गया कि पाटकर ने एक टीवी कार्यक्रम के दौरान उनके बारे में अपमानजनक टिप्पणी की थी। दूसरे मामले में भी ऐसा ही दावा पाटकर द्वारा प्रेस में दिए गए एक बयान के बारे में किया गया था। जिसमें मेधा ने कहा था कि “वीके सक्सेना ने मालेगांव का दौरा किया, एनबीए की प्रशंसा की और 40 हजार रुपये का चेक जारी किया। यह चेक लाल भाई समूह से आया था, जो एक कायर और देश विरोधी था।”
मेधा पाटकर को सज़ा सुनाते हुए मजिस्ट्रेट ने कहा कि “वीके सक्सेना को लेकर आरोपी (मेधा पाटकर) द्वारा की गई टिप्पणियां और प्रकाशित बयान के जरिए सक्सेना की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने का इरादा था। कोर्ट ने कहा कि आरोपी यानी मेधा पाटकर विश्वास था कि इस तरह के आरोप से शिकायतकर्ता की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचेगा। मजिस्ट्रेट शर्मा ने आगे कहा कि “प्रतिष्ठा किसी भी व्यक्ति की सबसे मूल्यवान संपत्तियों में से एक है।”






