बी सुदर्शन, अमित शाह (फोटो-सोशल मीडिया)
Delhi Politics: उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मियां बढ़ी हुई हैं। संसद में संख्याबल को देखते हुए चुनाव रिजल्ट लगभग तय है। इसके बावजूद भी नेता माहौल बनाने में जुटे हुए हैं। हालही में एक इंटरव्यू में गृहमंत्री अमित शाह ने इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी पर नक्सलवाद का समर्थन करने का आरोप लगाया था। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि इसके लिए रेड्डी ने सुप्रीम कोर्ट जैसी सम्मानित संस्था का दुरुपयोग किया। शाह का यह बयान पूर्व जजों को बिल्कुल अच्छा नहीं लगा।
अमित शाह के आरोपों पर बी सुदर्शन रेड्डी ने एक इंटरव्यू में जवाब दिया। अब इस मामले में पूर्व जजों की एंट्री हो गई है। 18 रिटायर्ड जजों ने संयुक्त रूप से अमित शाह के बयान की आलोचना की है। उन्होंने कहा कि ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से जजों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
गृहमंत्री की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए पूर्व जस्टिस कुरियन जोसेफ, पूर्व जस्टिस मदन भी लोकुर और पूर्व जस्टिस जे चेलमेश्वर सहित 18 जजों के समूह ने कहा कि सलवा जुडूम मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करने वाला अमित शाह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला न तो स्पष्ट रूप से और न ही लिखित निहितार्थों के माध्यम से नक्सलवाद या उसकी विचारधारा को समर्थन नहीं करता है।
संयुक्त रूप से जारी बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ए के पटनायक, जस्टिस अभय ओका, जस्टिस गोपाल गौड़ा, जस्टिस विक्रमजीत सेन, जस्टिस कुरियन जोसेफ, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस जे चेलमेश्वर शामिल हैं। उन्होंने कहा, “किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंच सकता है।”
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दरअसल अमित शाह ने कहा था कि विपक्ष के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बी सुदर्शन वही व्यक्ति हैं, जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में जज रहते हुए सलवा जुडू पर फैसला सुनाया। अगर उन्होंने फैसला नहीं सुनाया होता तो 2020 तक नक्सलवाद खत्म हो जाता।
रेड्डी ने कहा कि यह फैसला मेरा नहीं था। सलवा जुडूम पर फैसला सुप्रीम कोर्ट का था। मामले की सुनवाई दो जजों की बेंच कर रही थी। उन्होंने कहा कि गृहमंत्री से मैं इस मामले पर सीधे तौर पर उलझना नहीं चाहता हूं। इतना जरूर कहूंगा कि 40 पेज का फैसला उन्हें जरूर पढ़ना चाहिए। अगर पढ़े होते तो ऐसा नहीं बोलते।