कॉन्सेप्ट फोटो (डिजाइन)
नई दिल्ली: खनौरी बॉर्डर पर 43 दिनों से अनशन कर रहे भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की हालत नाजुक है। उनका पल्स रेट 42 पहुंच चुका है। डल्लेवाल की नाजुक होती तबीयत न सिर्फ किसानों के लिए बल्कि पंजाब प्रशासन लिए भी चिंता का सबब बनी हुई है। क्योंकि यह बात किसी से भी छिपी नहीं है कि अगर डल्लेवाल के साथ कुछ अनहोनी होती है तो किसान आंदोलन उग्र रूप ले सकता है।
डॉक्टरों की ओर से जारी हेल्थ बुलेटिन के अनुसार डल्लेवाल के शरीर जर्जर हो चुका है। लीवर के साथ किडनी और फेफड़ों में खराबी आ गई है। अब हालात तो यह बताए जा रहे हैं कि अगर जगजीत सिंह डल्लेवाल अनशन खत्म कर देते हैं तो भी रिकवरी मुश्किल है। वहीं केन्द्र सरकार की तरफ से अभी तक अनशन खत्म कराने की कोई सुगबुगाहट नजर नहीं आ रही है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या सरकार डल्लेवाल को यूं ही मरने देगी?
लोकतंत्र में विरोध का सबसे अहिंसक तरीका भूख हड़ताल है। किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल भी एमएसपी पर कानून बनाने की मांग पर अड़े हुए हैं। वे 26 नवंबर से खनौरी बॉर्डर पर भूख हड़ताल पर हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित कमेटी ने आंदोलनकारी किसानों से बातचीत करने की पेशकश की थी, जिसे किसान नेताओं ने ठुकरा दिया था।
डल्लेवाल की तबीयत हर दिन बिगड़ती जा रही है। 70 वर्षीय किसान नेता कैंसर के मरीज हैं और दवा भी नहीं ले रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पंजाब सरकार ने धरना स्थल पर मेडिकल टीम, एडवांस लाइफ सपोर्ट सिस्टम और एंबुलेंस तैनात की, लेकिन डल्लेवाल ने मेडिकल सपोर्ट लेने से इनकार कर दिया है। उनकी हालत गंभीर होती जा रही है।
किसान संगठनों का कहना है कि 2020 के किसान आंदोलन के दौरान केंद्र सरकार ने एमएसपी की कानूनी गारंटी, कर्जमाफी, स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने जैसी मांगों पर विचार करने का लिखित आश्वासन दिया था। डल्लेवाल भी वादे को लागू करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन केंद्र सरकार इस मुद्दे पर बात नहीं करना चाहती।
खनौरी बॉर्डर पर आंदोलनकारियों की भीड़ बढ़ती जा रही है, लेकिन केंद्र सरकार इस स्थिति को नजरअंदाज कर रही है। हर मंगलवार को किसानों से मिलने वाले कृषि मंत्री ने बयान दिया था कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को देख रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन किया जाएगा। यह रवैया सरकार की मुश्किलें बढ़ा सकता है, क्योंकि मीडिया में छपी कई कहानियां आंदोलनकारियों के बीच तैरने लगी हैं।
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि 2020 के आंदोलन के दौरान किसान संगठनों ने 11 दौर की वार्ता के बाद अड़ियल रवैया अपनाया और वार्ता विफल रही। 8 दिसंबर 2020 को गृह मंत्री अमित शाह वार्ता के लिए पूसा पहुंचे, लेकिन किसानों ने बातचीत करने से इनकार कर दिया। इससे सरकार की काफी फजीहत हुई। चार साल पुराने अनुभव के कारण केंद्र सरकार सीधे तौर पर बातचीत की पहल नहीं कर रही है।
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हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा गया कि सरकार यह बयान क्यों नहीं दे रही है कि वह वास्तविक मांगों पर विचार करेगी और हम किसानों से चर्चा करने के लिए तैयार हैं। इसके जवाब में तुषार मेहता ने बताया था कि शायद कोर्ट को इससे जुड़े कारकों की जानकारी नहीं है। केंद्र सरकार को हर किसान की चिंता है।
डल्लेवाल का आमरण अनशन प्रसिद्ध पर्यावरणविद् स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद उर्फ प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की याद दिला रहा है। जीडी अग्रवाल ने भी गंगा की सफाई के लिए 112 दिनों तक आमरण अनशन करते हुए दम तोड़ दिया था। उन्होंने गंगा में गिर रहे प्रदूषित नालों और पवित्र नदी की सफाई के नाम पर खर्च किए जा रहे अरबों रुपये पर सवाल उठाए थे। उन्होंने अनशन से पहले प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा था, लेकिन जवाब नहीं मिला। 2018 में जीडी अग्रवाल ने एम्स ऋषिकेश में अंतिम सांस ली और उनके साथ ही एक बड़ा आंदोलन खत्म हो गया।
खनौरी बॉर्डर पर बैठे किसानों का कहना है कि अगर केंद्र सरकार सीधे तौर पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर बात करे तो शायद जगजीत सिंह डल्लेवाल को मेडिकल मदद मिल सके। केंद्र सरकार को यह नहीं भूलना चाहिए कि भले ही अभी किसान आंदोलन पंजाब-हरियाणा बॉर्डर तक ही सीमित नजर आ रहा हो, लेकिन एक गलती फिर से बड़े आंदोलन का कारण बन सकती है। खनौरी बॉर्डर पर देश के दूसरे हिस्सों से भी किसान जुटने लगे हैं।