प्रतीकात्मक तस्वीर (AI)
DRDO New Project: आधुनिक विज्ञान और जंग की तरफ बढ़ रही दुनिया में पनडुब्बियां किसी भी देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गई हैं। हथियारों की भाषा में इन्हें साइलेंट किलर कहा जाता है, क्योंकि ये गहराई में छिपी रहती हैं और इन्हें ढूंढना बेहद मुश्किल होता है। यही वजह है कि दुनिया की सभी नौसेनाएं पनडुब्बियों का पता लगाने के लिए नई तकनीकें विकसित कर रही हैं।
इसी कड़ी में, भारतीय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) ने अब एक ऐसी योजना का खुलासा किया है, जो इस समस्या का स्थायी समाधान हो सकती है। यह तकनीक किसी भी पनडुब्बी का पता लगाने के लिए बिल्कुल नए वैज्ञानिक सिद्धांत का इस्तेमाल करती है।
DRDO के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने बताया है कि भारत पनडुब्बी रोधी युद्ध के लिए क्वांटम सेंसिंग तकनीक विकसित करने की योजना पर काम कर रहा है। इस तकनीक में समुद्री गश्ती विमानों या ड्रोन पर उच्च संवेदनशीलता वाले सेंसर लगाए जाएंगे।
डॉ. कामत ने बताया कि पनडुब्बियां स्टील से बनी होती हैं और जब वे पानी के भीतर चलती हैं, तो पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र में मामूली बदलाव करती हैं। क्वांटम सेंसर इतने संवेदनशील होते हैं कि वे इस छोटे से चुंबकीय बदलाव का भी पता लगा सकते हैं। यह तकनीक पारंपरिक सोनार से बिल्कुल अलग है।
डीआरडीओ ऐसे मैग्नेटोमीटर विकसित कर रहा है जो पिको-टेस्ला यानी टेस्ला के एक ट्रिलियनवें हिस्से के बराबर चुंबकीय परिवर्तनों का पता लगा सकते हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यह निष्क्रिय रूप से काम करता है, यानी यह किसी भी प्रकार की ध्वनि या ऊर्जा उत्सर्जित नहीं करता, जिससे इसका पता लगाना असंभव है।
यह तकनीक भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। चीन और पाकिस्तान दोनों ही अपनी पनडुब्बी क्षमताओं को बढ़ा रहे हैं, जिनमें परमाणु पनडुब्बियां भी शामिल हैं। ये पनडुब्बियां अक्सर खामोश रहती हैं और पारंपरिक तरीकों से इनका पता लगाना लगभग असंभव होता है। ऐसे में, क्वांटम सेंसर इन पनडुब्बियों की गतिविधियों का पता लगाकर नौसेना को एक बड़ा रणनीतिक लाभ देंगे, जिससे उन्हें मार गिराना आसान हो जाएगा।
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इसके अलावा, डीआरडीओ को अगले 2-3 वर्षों में एक स्वदेशी समाधान विकसित करने की उम्मीद है। इन सेंसरों को भारत के पी-8आई पोसाइडन जैसे समुद्री गश्ती विमानों और अन्य मानव रहित हवाई वाहनों में एकीकृत किया जा सकता है।