सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्रीकृष्णा व अधिवक्ता प्रशांत भूषण (सोर्स -सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: देश में मानवाधिकार और लोकतांत्रिक मूल्यों को लेकर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बी.एन. श्रीकृष्ण ने चिंता जताते हुए कहा कि भारत में न्याय व्यवस्था मुश्किल दौर से गुजर रही है, क्योंकि अदालतों में पांच करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। उन्होंने न्याय में देरी को अन्याय करार देते हुए कहा कि असहमति और विरोध लोकतंत्र की आत्मा हैं, लेकिन इन अधिकारों पर खतरा मंडरा रहा है। न्यायमूर्ति ए.के. पटनायक ने भी हिरासत में मौत, फर्जी मुठभेड़ों और जेलों में होने वाली यातनाओं पर गहरी चिंता व्यक्त की।
न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने देश में मानवाधिकारों और धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के उल्लंघन पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए कहा, न्याय में देरी न्याय से इनकार है। असहमति और विरोध की आवाज उठाने का अधिकार लोकतंत्र की आत्मा है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाना चाहिए, कानून का शासन कायम रहना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता का अर्थ अन्य धार्मिक विश्वासों को भी सहन करने की क्षमता होना चाहिए। लेकिन भारत में अब ये सभी प्रमुख मूल्य खतरे में हैं।
न्यायमूर्ति श्रीकृष्ण ने कहा कि भारत में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार होना चाहिए और धर्मनिरपेक्षता का मतलब अन्य धार्मिक विश्वासों को सहन करना है। लेकिन बीते वर्षों में ये मूल सिद्धांत खतरे में आ गए हैं। उन्होंने न्यायिक स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी बढ़ते खतरे का जिक्र किया।
प्रशांत भूषण ने कहा कि भारत में मौलिक अधिकारों का बड़े पैमाने पर हनन हो रहा है। संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर किया जा रहा है और कठोर कानूनों के जरिए दमन बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने निर्वाचन आयोग और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए।
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संयुक्त राष्ट्र मानव स्वतंत्रता सूचकांक 2023 में भारत 165 देशों में 109वें स्थान पर है और 2015 से 2023 के बीच इसके स्कोर में नौ प्रतिशत की गिरावट आई है। 2021 में देश में 31,677 बलात्कार मामले दर्ज हुए, जबकि 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों की संख्या 4.45 लाख रही। हिरासत में हिंसा की घटनाएं भी बढ़ रही हैं, जिसमें पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में सैकड़ों मौतें हो रही हैं।
( ऐजेंसी इनपुट के साथ )