घटती प्रजनन दर ने बढ़ाई चिंता (संदर्भ तस्वीर)
नई दिल्ली: इस वर्ष के अंत तक भारत की जनसंख्या 1.46 बिलियन तक पहुंचने का अनुमान है, लेकिन प्रजनन दर गिरकर 1.90 प्रति महिला हो गई है, जो जनसंख्या स्तर को बनाए रखने के लिए आवश्यक 2.1 से कम है। इस लिहाज से देखा जाए तो वो दिन दूर नहीं जब भारत को भी रूस की तरह बच्चे पैदा करने के लिए प्रोत्साहन देने की ज़रूर पड़ेगी।
क्योंकि प्रजनन दर के गिरने के बाद यह माना जा रहा है कि यदि नीतिगत हस्तक्षेप के माध्यम से इस प्रवृत्ति को उलट नहीं दिया जाता है, तो भारत में लंबे समय तक जनसंख्या स्तर को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण होगा। संयुक्त राष्ट्र की नई जनसांख्यिकी रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत की प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे गिर गई है।
यूएनएफपीए की ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड पॉपुलेशन (एसओडब्लूपी) रिपोर्ट 2025’ जिसका शीर्षक ‘द रियल फर्टिलिटी क्राइसिस’ है, में प्रजनन क्षमता में गिरावट के बारे में घबराने के बजाय अधूरे प्रजनन लक्ष्यों पर ध्यान केंद्रित करने का आह्वान किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि लाखों लोग अपने प्रजनन लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम नहीं हैं। रिपोर्ट के अनुसार, यह कम या अधिक जनसंख्या के बजाय वास्तविक संकट है और इसका उत्तर बेहतर प्रजनन क्षमता में निहित है।
रिपोर्ट में जनसंख्या संरचना, प्रजनन क्षमता और जीवन प्रत्याशा में परिवर्तन का भी खुलासा किया गया है, जो एक बड़े जनसांख्यिकीय परिवर्तन का संकेत देता है। रिपोर्ट में पाया गया कि भारत की कुल प्रजनन दर घटकर 1.9 जन्म प्रति महिला ही शेष बची है, जो कि 2.1 के प्रतिस्थापन स्तर से नीचे है।
इसका मतलब है कि औसतन महिलाएं एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जनसंख्या के आकार को बनाए रखने के लिए आवश्यक संख्या से कम बच्चे पैदा कर रही हैं। प्रजनन दर में गिरावट के बावजूद, भारत में अभी भी एक महत्वपूर्ण युवा आबादी है, जिसमें 0-14 आयु वर्ग में 24 प्रतिशत, 10-19 आयु वर्ग में 17 प्रतिशत और 10-24 आयु वर्ग में 26 प्रतिशत हैं।
68 प्रतिशत आबादी कामकाजी आयु वर्ग यानी 15 से 64 वर्ष के बीच की है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट भारत को मध्यम आय वाले देशों के समूह में रखती है जो तेजी से जनसांख्यिकीय परिवर्तन से गुजर रहे हैं। भारत में यूएनएफपीए के प्रतिनिधि एंड्रिया एम वोजनार ने कहा कि भारत ने प्रजनन दर को कम करने में महत्वपूर्ण प्रगति की है।