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पुण्यतिथि विशेष: सिर्फ दंगल में ही नहीं राजनीतिक अखाड़े में भी चलता था मुलायम सिंह यादव का ‘चर्खा दांव’

मुलायम सिंह यादव के बारे में एक कहावत है कि वह चाहे अखाड़े में या फिर राजनीतिक दंगल में जिस विरोधी को अपने चर्खा दांव में फंसाते थे उसे चित करके ही छोड़ते थे। आज 10 अक्टूबर को उनकी दूसरी पुण्यतिथि है। इस मौके पर हम जानेंगे उनकी जिंदगी से जुड़ी दिलचस्प जानकारियां।

  • By अभिषेक सिंह
Updated On: Oct 10, 2024 | 12:35 AM

मुलायम सिंह यादव (फाइल फोटो)

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नवभारत डेस्क : कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव की जवानी के दिनों में अगर उनका हाथ अपने विरोधी की कमर तक पहुंच जाता था तो वह चाहे कितना भी लंबा-चौड़ा या ताकतवर क्यों न हो, खुद को उसकी पकड़ से छुड़ाने की हिम्मत नहीं करता था। राजनीति में भी उन्होंने अपने विरोधियों के साथ ऐसा ही किया। आज यानी गुरुवार 10 अक्टूबर को उनकी दूसरी पुण्यतिथि है। इस मौके पर हम उनके राजनीतिक सफर से लेकर उनके असर तक सब कुछ जानेंगे।

आज भी उनके गांव के लोग उनके चरखा दांव को नहीं भूले हैं, जब वह बिना हाथ का इस्तेमाल किए पहलवान को चित कर देते थे। शिक्षक बनने के बाद मुलायम ने कुश्ती पूरी तरह छोड़ दी थी। लेकिन जीवन के आखिरी समय तक वह अपने गांव सैफई में कुश्ती दंगल का आयोजन करते रहे। लेकिन उत्तर प्रदेश पर नजर रखने वाले कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि इसी कुश्ती कौशल की वजह से मुलायम राजनीति के मैदान में भी उतने ही सफल रहे, जबकि उनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं थी।

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मुलायम सिंह की प्रतिभा को सबसे पहले प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता नत्थू सिंह ने पहचाना और 1967 के चुनाव में उन्हें जसवंतनगर विधानसभा सीट से टिकट दिलाया। उस समय मुलायम की उम्र महज 28 साल थी और वे प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र के विधायक बने। विधायक बनने के बाद उन्होंने एमए की पढ़ाई पूरी की। 1977 में जब उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया। उस समय उनकी उम्र महज 38 साल थी।

अजीत को पछाड़कर बने सीएम

चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक उत्तराधिकारी और उनके बेटे अजित सिंह को कानूनी उत्तराधिकारी बताते थे। लेकिन जब पिता के गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अजित सिंह अमेरिका से भारत लौटे तो उनके समर्थकों ने उन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाने पर जोर दिया। इसके बाद मुलायम सिंह और अजित सिंह के बीच प्रतिद्वंद्विता बढ़ गई। लेकिन मुलायम सिंह को उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। 5 दिसंबर 1989 को लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में उन्होंने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली और मुलायम ने रुंधे गले से कहा, “गरीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का लोहिया का पुराना सपना सच हो गया।”

  • 1967 में वे पहली बार उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर से विधायक बने।
  • 1996 तक मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर से विधायक।
  • 1989 में वे पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
  • 1993 में वे दूसरी बार देश के सबसे बड़े सियासी सूबे के मुख्यमंत्री बने।
  • 1996 में मुलायम सिंह यादव ने पहली बार मैनपुरी से लोकसभा का चुनाव लड़ा।
  • 1996 से 1998 तक वे संयुक्त मोर्चा सरकार में रक्षा मंत्री रहे।
  • इसके बाद मुलायम सिंह यादव ने संभल और कन्नौज से लोकसभा चुनाव भी जीता।
  • 2003 में मुलायम सिंह यादव एक बार फिर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
  • 2004 में भी लोकसभा चुनाव जीता, लेकिन बाद में इस्तीफा दे दिया।
  • 2009 में उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
  • 2014 में मुलायम सिंह यादव ने आजमगढ़ और मैनपुरी दोनों जगहों से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।
  • 2019 में उन्होंने एक बार फिर मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीत हासिल की।

यह भी पढ़ें:-  जयंती विशेष: लाल बहादुर शास्त्री कैसे बने पीएम, क्यों दिया जय जवान-जय किसान का नारा, ताशकंद में क्या हुआ? जानिए पूरी कहानी

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Published On: Oct 10, 2024 | 12:34 AM

Topics:  

  • Samajwadi Party

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