मुंशी प्रेमचंद (सोर्स-सोशल मीडिया)
नवभारत डेस्क: देश और दुनिया में जब-जब हिंदी साहित्य की बात होगी तो मुंशी प्रेमचंद का नाम सर-फेहरिस्त होगा। जब भी उपन्यासकारों का जिक्र किया जाएगा तो मुंशी प्रेमचंद का नाम सफ-ए-अव्वल पर आएगा। जब भी सामाजिक कुरीतियों पर आधारित कहानियां लिखी या सुनाई जाएंगी तो आपके जेहन गूंजने वाला पहला नाम मुंशी प्रेमचंद का होगा।
आज मंगलवार 8 अक्टूबर को हिंदी साहित्य के महान लेखक और उपन्यास सम्राट की उपाधि से अलंकृत मुंशी प्रेमचंद की 88वीं पुण्यतिथि है। उनकी गिनती हिंदी और उर्दू के महानतम लेखकों में होती है। उन्होंने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां लिखीं।
मुंशी प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। उनके पिता अजायब राय एक पोस्ट ऑफिस क्लर्क थे। उनकी मां का नाम आनंदी देवी था। उनके माता-पिता ने उनका नाम धनपत राय श्रीवास्तव रखा था। लेकिन बाद में वह मुंशी प्रेमचंद के नाम से मशहूर हुए।
प्रेमचंद की शुरुआती शिक्षा उर्दू और फारसी में हुई थी। हालांकि, जब वे आठ साल के थे, तब उनकी मां का निधन हो गया था। उन्होंने बहुत छोटी उम्र में ही काफी दुख झेले। इसी बीच 15 साल की उम्र में उनकी शादी कर दी गई। हालांकि, शादी के एक साल बाद ही उनके पिता का भी निधन हो गया।
कहा जाता है कि मुंशी प्रेमचंद के ज्यादातर उपन्यास और कहानियां उनके बचपन से प्रभावित थीं। उन्होंने बचपन में ही अपनी मां को खो दिया था और उन्हें अपनी सौतेली मां से भी प्यार नहीं मिला। लेकिन, उन्होंने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और फारसी, इतिहास और अंग्रेजी विषयों में बीए किया और बाद में शिक्षा विभाग के इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए। बाद में, उन्होंने ब्रिटिश शासन के विरोध में अपने पद से इस्तीफा दे दिया।
मुंशी प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज और देश को जागरूक करने का काम किया। उन्होंने साल 1905 में पहली बार ‘ज़माना’ नामक अखबार में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के नेता गोपाल कृष्ण गोखले पर एक लेख लिखा था। प्रेमचंद की पहली प्रकाशित कहानी ‘दुनिया का सबसे अनमोल रतन’ थी, जो 1907 में ज़माना में प्रकाशित हुई थी।
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इसके बाद उन्होंने कफ़न, नमक का दरोगा, ईदगाह, ठाकुर का कुआँ, दो बैलों की कथा, सूरदास की झोपड़ी, पूस की रात, शतरंज के खिलाड़ी, पंच परमेश्वर, प्रायश्चित जैसी रचनाएँ लिखीं। मुंशी प्रेमचंद पर ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों की नज़र तब पड़ी जब उनकी रचना सोज़-ए-वतन पर ब्रिटिश सरकार के अधिकारियों ने देशद्रोही रचना मानकर उस पर प्रतिबंध लगा दिया। हमीरपुर जिले के अंग्रेज कलेक्टर ने प्रेमचंद के घर पर छापा मारा और सोज-ए-वतन की करीब पांच सौ प्रतियां जला दी गईं। इसके बाद उर्दू पत्रिका ज़माना के संपादक ने उन्हें प्रेमचंद नाम रखने की सलाह दी। उन्होंने अपनी रचनाओं में प्रेमचंद नाम लिखना शुरू कर दिया।
प्रेमचंद की रचनाओं के कारण ही बंगाल के प्रसिद्ध उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें ‘उपन्यास सम्राट’ की उपाधि दी थी। आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद का लंबी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को निधन हो गया था। मुंशी प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास, 300 से अधिक कहानियां, तीन नाटक, 10 अनुवाद, सात बच्चों की किताबें और कई लेखों की रचना की। उनकी रचनाओं में गोदान, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन और कर्मभूमि जैसी कई कालजयी कृतियाँ शामिल हैं।