पुतिन-जिनपिंग की गुफ्तगू (सौ. सोशल मीडिया)
Living Life 150 Years: हर किसी का जीवन और मृत्यु का समय निर्धारित है। जीवनकाल के 100 वर्षों में आप कितने साल जीते है इसका अनुमान हम नहीं लगा सकते है लेकिन अगर आप हेल्दी लाइफस्टाइल अपनाते है तो आपके लिए जीने की उम्र को बढ़ाया जा सकता है और मौत को हराया जा सकता है। हाल ही में एक रोचक घटना घटी है जो रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच की है। बताया जाता है कि, मुलाकात के दौरान हॉट माइक पर रिकॉर्ड हुई बातचीत में दोनों ने कुछ ऐसा कहा कि पूरी दुनिया की दिलचस्पी बढ़ गई। यह बातचीत बीजिंग में चीनी मिलिट्री परेड के दौरान रिकॉर्ड हुई। दरअसल दोनों ने अपनी बातचीत में लाइफस्पैन और ओल्शैंस्की के सिद्धांत को लेकर बात की है।
यहां पर बातचीत के दौरान पुतिन के अनुवादक को कहते सुना गया, “मानव अंगों को लगातार प्रत्यारोपित किया जा सकता है। जितना अधिक आप जीवित रहते हैं, उतने ही युवा होते जाते हैं—और संभवतः अमरता भी हासिल की जा सकती है।”इस बयान के सामने आने के साथ ही लाइफ एक्सपेक्टेंसी की बहस छिड़ गई है। प्रश्न पूछा जाने लगा है कि क्या इंसान वास्तव में 150 साल तक जी सकता है?
इसके अलावा बताया गया कि, पिछले 200 वर्षों में दुनिया भर में औसत लाइफ एक्सपेक्टेंसी में ऐतिहासिक वृद्धि हुई है। 1800 के दशक की शुरुआत में जहां औसत उम्र लगभग 30 वर्ष हुआ करती थी, वहीं 2000 तक यह कई विकसित देशों में 80 वर्ष तक पहुंच चुकी थी। लेकिन हाल ही में एक ऐसी स्टडी सामने आई जो 150 वाली बात को खारिज करती है। इसे लेकर प्रसिद्ध जनसांख्यिकीविद् डॉ. एस. जय ओल्शैंस्की ने बीते साल कहा था कि, उम्र घटने की मुख्य वजह मोटापे, डायबिटीज, दिल की बीमारियों और सामाजिक असमानता नजर आती है। जनसांख्यिकीविद् की बात को मानें तो, मानव का अधिक जीवनकाल लगभग 120 वर्ष के आसपास है। यानि इस उम्र तक व्यक्ति नेचुरली तौर पर जी सकता है लेकिन इसके बाद जीने के लिए सर्जरी या तकनीक ही काम करती है जो नामुमकिन है।
ओल्शैंस्की और अन्य वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर मॉडर्न सोसाइटी ने जीवनशैली को दुरुस्त नहीं किया, सेहत से जुड़ी परेशानियों और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों को गंभीरता से नहीं लिया, तो आने वाले समय में लाइफस्पैन और छोटा हो सकता है।वैज्ञानिकों का मानना है कि हमें अब ‘अमरत्व’ की खोज छोड़कर “स्वस्थ जीवन” पर ध्यान देना होगा — यानी हेल्थस्पैन को बढ़ाना है, न कि लाइफस्पैन को!
आईएएनएस के अनुसार