क्यों चुप है एंटीबायोटिक्स दवाओं के इस्तेमाल पर मेडिकल कॉलेज (सौ-सोशल मीडिया)
नई दिल्ली: किसी भी बीमारी या दर्द को कम करने के लिए डॉक्टर द्वारा एंटीबायोटिक दिया जाता है जिसकी मात्रा कितनी होनी चाहिए और कितनी नहीं इसका ख्याल डॉक्टर ही रखते है। हाल ही में राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) ने एंटीबायोटिक दवाओं को लेकर 606 मेडिकल कॉलेजों पर किए सर्वे के परिणाम को जारी किया है। जिसमें पाया गया कि, 42 फीसदी सरकारी और निजी मेडिकल कॉलेजों ने इसे लेकर कोई कदम नहीं उठाया है मरीजों को कितनी एंटीबायोटिक दवाएं लिखना है।
एनएमसी आयोग द्वारा रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR) मॉड्यूल को जारी कर दिया गया है जिसके 175 पन्नों के जारी मॉड्यूल में कहा गया कि, एंटीबायोटिक्स डॉक्टरों के लिए अंतिम हथियार हैं, जिनका इस्तेमाल करने से पहले डॉक्टर को बार-बार सोचना चाहिए कि। एंटीबायोटिक दवाओं को शक्तिशाली माना गया है जैसे जब बैक्टीरिया या फिर वायरस समय के साथ बदलते हैं तो इन दवाओं पर प्रतिक्रिया नहीं करते हैं तब मरीज रोगाणुरोधी प्रतिरोध ( AMR) की चपेट में आता है।
एनएमसी द्वारा किए गए सर्वे के दौरान 2022 से 2023 के आंकड़े लिए गए है जिसमें 606 मेडिकल कॉलेजों से सर्वे के जरिए पूछा गया कि, एंटीबायोटिक दवाओं के खिलाफ स्वास्थ्य कर्मचारी क्या कार्य कर रहे हैं क्या कोई कदम उठाया गया है। इस पर केवल 43 फीसदी ने सही जानकारी देते हुए स्पष्ट किया कि,साल में एक बार इस पर काम किया जाता है तो वहीं पर 236 कॉलजों ने धांधली दिखाते हुए इस मामले पर चुप्पी साध ली।
यहां पर आंकड़ों की मानें तो, एएमआर की वजह से साल 2019 में 2 लाख 97 हजार मौतें दर्ज हुई तो वहीं पर 10 लाख 45 हजार 500 लोगों की मौते अब तक हो चुकी है। इसके अलावा भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) ने 2011 से 2023 के बीच के आंकड़ों में 12 रिपोर्ट में रोगाणुरोधी प्रतिरोध को देश के लिए बड़ी महामारी माना है।