जब संजय मिश्रा ने अपनी ही फिल्म के प्रीमियर में जाने से किया था इनकार
Sanjay Mishra Birthday Special Story: हिंदी सिनेमा के संजीदा और बेहतरीन एक्टर्स की बात होती है, तो संजय मिश्रा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। बनारस की गलियों से निकलकर राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तक और वहां से बॉलीवुड तक का उनका सफर किसी प्रेरणा से कम नहीं। एक्टर के जन्मदिन के मौके पर एक ऐसा किस्सा याद करना जरूरी है, जिसने उन्हें एक्टर नहीं बल्कि संवेदनशील कलाकार बना दिया।
संजय मिश्रा ने अपनी जिंदगी में तमाम तरह के किरदार निभाए हैं कि ‘गोलमाल’ के ‘दुबे जी’ से लेकर ‘धमाल’ के मजेदार रोल और ‘आंखों देखी’ के गहरे दार्शनिक पात्र तक। लेकिन ‘आंखों देखी’ उनके करियर का टर्निंग पॉइंट साबित हुई। साल 2014 में रिलीज हुई फिल्म ‘आंखों देखी’ में उन्होंने राजे बाबू नाम के व्यक्ति का किरदार निभाया था, जो यह तय करता है कि अब वह केवल उसी चीज को सच मानेगा, जिसे उसने अपनी आंखों से देखा हो। यह किरदार इतना सच्चा और विचारशील था कि दर्शकों के दिलों में बस गया।
फिल्म की रिलीज के बाद जब ‘आंखों देखी’ की प्रीमियर स्क्रीनिंग रखी गई, तो सभी कलाकारों के आने की उम्मीद थी। लेकिन संजय मिश्रा ने जाने से साफ मना कर दिया। जब उनसे इस फैसले की वजह पूछी गई, तो उनका जवाब सबको सोचने पर मजबूर कर गया। संजय मिश्रा ने कहा था कि मैं इस फिल्म को एक आम दर्शक की तरह नहीं देख सकता। अगर मैं राजे बाबू बनकर फिल्म देखने जाऊंगा, तो मुझे लगेगा कि मैं एक झूठ देख रहा हूं।
यह बात सुनकर सभी हैरान रह गए, लेकिन यहीं से यह साफ हो गया कि मिश्रा अपने किरदार को सिर्फ निभाते नहीं, बल्कि उसे जीते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि ‘आंखों देखी’ उनके लिए सिर्फ एक फिल्म नहीं थी, बल्कि एक आध्यात्मिक अनुभव था। उन्होंने साबित किया कि असली कलाकार वही है, जो अपने किरदार में सच्चाई खोज लेता है।
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‘आंखों देखी’ के लिए संजय मिश्रा को फिल्मफेयर क्रिटिक्स अवॉर्ड मिला, और यह फिल्म आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे गहरी फिल्मों में गिनी जाती है। आज भी संजय मिश्रा वही सादगी और ईमानदारी अपने हर किरदार में लेकर आते हैं। उन्होंने कभी शोहरत के पीछे नहीं भागा, बल्कि अपने अभिनय को ही अपनी पहचान बना लिया।