नंदिता दास के एक्ट्रेस से डायरेक्टर बनने तक का शानदार सफ़र
Nandita Das Birthday: बॉलीवुड और भारतीय सिनेमा की दुनिया में नंदिता दास एक ऐसा नाम है जो सिर्फ एक बेहतरीन एक्ट्रेस के तौर पर ही नहीं, बल्कि एक उम्दा डायरेक्टर और सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी जाना जाता है। उन्होंने अपने करियर में सिर्फ कमर्शियल फिल्मों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया, बल्कि हमेशा ऐसी कहानियों को चुना और बनाया जो दर्शकों को सोचने पर मजबूर करती हैं। नंदिता दास ने 10 से अधिक भाषाओं की 40 से अधिक फीचर फिल्मों में काम किया है, जिससे उनकी बहुमुखी प्रतिभा का पता चलता है।
नंदिता दास ने हमेशा लीक से हटकर काम किया है। एक अभिनेत्री के रूप में, उन्हें ‘फायर’, ‘अर्थ’ और ‘बवंडर’ जैसी फिल्मों में उनके पावरफुल परफॉर्मेंस के लिए पहचान मिली। इन फिल्मों ने अक्सर सामाजिक रूढ़ियों, लैंगिक असमानता और राजनीति जैसे गंभीर विषयों को छुआ। उनका काम भारतीय सिनेमा के समानांतर और स्वतंत्र सिनेमा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है, जो उन्हें समकालीन अभिनेत्रियों से अलग खड़ा करता है।
नंदिता दास ने सिर्फ अभिनय तक ही खुद को सीमित नहीं रखा, बल्कि डायरेक्शन में भी अपनी एक मजबूत छाप छोड़ी। उन्होंने 2008 में अपनी पहली फीचर फिल्म ‘फिराक’ (Firaaq) से निर्देशन की शुरुआत की। यह फिल्म 2002 के गुजरात दंगों के बाद के सामाजिक और भावनात्मक प्रभावों पर आधारित थी। ‘फिराक’ को समीक्षकों द्वारा खूब सराहा गया और इसने कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार जीते। उनकी दूसरी फीचर फिल्म, ‘मंटो’ (Manto), प्रसिद्ध उर्दू लेखक सआदत हसन मंटो के जीवन पर आधारित थी, जिसने कान फिल्म फेस्टिवल (Cannes Film Festival) में काफी प्रशंसा बटोरी।
ये भी पढ़ें- फेमस सिंगर-एक्ट्रेस का 71 की उम्र में निधन, हिंदी सिनेमा की एक आवाज हुई खामोश
नंदिता दास को हमेशा समाज के गंभीर मुद्दों पर बेबाकी से अपनी राय रखने के लिए जाना जाता है। वह मानवाधिकारों, बच्चों के अधिकारों और महिलाओं के मुद्दों पर सक्रिय रूप से आवाज उठाती हैं। उनका सबसे प्रमुख अभियान ‘डार्क इज ब्यूटीफुल’ (Dark is Beautiful) रहा है, जिसे उन्होंने 2013 में लॉन्च किया था। यह अभियान भारतीय समाज में गहरे रंग के प्रति व्याप्त पूर्वाग्रहों को चुनौती देता है और लोगों को प्राकृतिक रंग रूप को स्वीकार करने के लिए प्रेरित करता है।
नंदिता दास का प्रभाव केवल भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उन्हें वैश्विक स्तर पर पहचान मिली है। उन्हें 2011 में कान फिल्म फेस्टिवल (Cannes) की जूरी में दो बार सदस्य के रूप में शामिल होने का सम्मान मिला है। उनके निर्देशन और अभिनय को दुनिया भर के फिल्म समारोहों में सराहा गया है। उनका काम भारतीय सिनेमा की विविधता और गहराई को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सफलतापूर्वक प्रस्तुत करता है।