
विजय वर्मा-फातिमा सना शेख की फिल्म 'गुस्ताख इश्क’
Gustakh Ishq Movie Review: कहानी के केंद्र में है विजय वर्मा, एक प्रिंटिंग प्रेस का मालिक तो है, लेकिन हालत इतनी बदतर कि प्रेस बिकने की नौबत आ चुकी है। उसे एक ऐसे शायर की तलाश है जिसकी किताब छपते ही उसका प्रेस राजधानी एक्सप्रेस की रफ्तार से चल पड़े और उसकी गरीबी मिट जाए। वह शायर हैं नसीर साहब, जिनकी बेटी की भूमिका निभाई है फ़ातिमा सना शेख़ ने, और उनके रामू काका बने हैं शारीब हाशमी। विजय अपनी बंद पड़ी प्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए नसीर साहब से उर्दू सीखता है, उनकी बेटी से प्यार कर बैठता है और अपने परिवार की तानेबाज़ी भी झेलता है। लेकिन वह इसी शायर की किताब छापना क्यों चाहता है? क्या वह इसमें सफल होता है? उसका फ़ातिमा के प्रति प्यार सच्चा था या दिखावा? फिल्म पूरी तरह इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द घूमती है।
परफॉर्मेंस: फिल्म में विजय वर्मा ने बेहद बढ़िया काम किया है। उनके किरदार में पेंचीदगी है जिसे उन्होंने बखूबी निभाया है। फातिमा सना शेख ने भी अपने काम से हमें इम्प्रेस करती नजर आई। उनके किरदार में एक ठहराव है और वे अपने एक्सप्रेशंस को बढ़िया ढंग से पोर्ट्रे करती हैं। फिल्म में नसीरुद्दीन शाह हमेशा की तरह अपने किरदार में ढले हुए नजर आए।
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फाइनल टेक: ‘गुस्ताख इश्क’ की सबसे बड़ी गुस्ताख़ी यही है कि यह फिल्म आज के दौर में बनाई गई है। जैसे पहले कई हिंदी या कल्ट फिल्मों को “ahead of its time” कहा जाता था, वैसे ही यह कहना गलत नहीं होगा कि यह फिल्म अपने समय से काफी पीछे है। कहानी साधारण है, जिसे पूरी तरह शायराना अंदाज में सुनाया गया है, एक ऐसा अंदाज जो आज के समय की पसंद से बिल्कुल मेल नहीं खाता। फिल्म तकनीकी रूप से मजबूत है म्यूज़िक, सिनेमाटोग्राफी, कलर ग्रेडिंग और आर्ट डायरेक्शन बेहतरीन। लेकिन संपादन और नैरेशन उतने ही कमजोर। कई चीज़ें स्पष्ट ही नहीं होतीं, जैसे विजय का एक बार फिर फ़ातिमा से मुंह मोड़ लेना। बेहतर एडिटिंग से कम से कम 10–15 मिनट बचाए जा सकते थे। कुल मिलाकर ये फिल्म एक बार देखी जा सकती है।






