शब्दों के जादूगर है गुलजार
Gulzar Birthday Special Story: हिंदी सिनेमा और साहित्य की दुनिया में गुलजार का नाम उन शख्सियतों में लिया जाता है, जिनकी रचनाएं समय की धूल से कभी धुंधली नहीं होतीं। 18 अगस्त 1934 को झेलम (अब पाकिस्तान) में जन्मे संपूरण सिंह कालरा, जिन्हें दुनिया गुलजार के नाम से जानती है। गुलजार 18 अगस्त को अपना 91वां जन्मदिन मनाएंगे। उन्होंने कविताओं, गीतों और कहानियों के जरिए पीढ़ियों को छुआ है।
गुलजार की लेखनी में बंटवारे का दर्द, शहरों की गलियों की खुशबू और इंसानी रिश्तों की गहराई एक साथ झलकती है। गुलजार ने सिर्फ सिनेमा और साहित्य में अपनी अलग पहचान नहीं बनाई, बल्कि निजी जिंदगी में भी एक संवेदनशील और जिम्मेदार पिता के रूप में याद किए जाते हैं। 1973 में उन्होंने अभिनेत्री राखी से शादी की, लेकिन जब उनकी बेटी मेघना गुलजार महज एक साल की थीं, तब दोनों अलग हो गए। इसके बाद गुलजार ने अकेले ही बेटी की परवरिश की और उनके हर छोटे-बड़े सपनों का ख्याल रखा।
मेघना, जो आज एक सफल फिल्म निर्देशक हैं, कई मंचों पर कह चुकी हैं कि उनके पिता ने कभी डांटा नहीं, लेकिन अनुशासन हमेशा सिखाया। गुलजार खुद उन्हें स्कूल के लिए तैयार करते, चोटी बनाते, जूते पॉलिश करते और समय पर स्कूल छोड़ने-लेने जाते। मेघना ने कहा था कि पापा ने कभी मां की कमी महसूस नहीं होने दी। उन्होंने पढ़ाई को प्राथमिकता दी और बोस्की से हमेशा कहा कि पढ़ाई पूरी करो, फिर जीवन अपने ढंग से जियो।
गुलजार की लेखनी की शुरुआत बिमल रॉय की फिल्म बंदिनी (1963) से हुई, जिसमें लिखा उनका गाना मोरा गोरा रंग लइले आज भी उतना ही लोकप्रिय है। इसके बाद उनकी कलम से निकले गीत तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा नहीं, कजरारे कजरारे और छैंया छैंया जैसे सदाबहार गानों ने उन्हें अमर कर दिया। उनकी नज्मों में गालिब की छाया, उर्दू की नज़ाकत और हिंदी की सहजता का अनोखा मेल है।
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गुलजार की आवाज भी उनकी लेखनी जितनी ही असरदार है। चाहे किसी फिल्म का संवाद हो या मंच से कही पंक्तियां, उनकी आवाज़ सुनते ही लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। यही वजह है कि आज भी जब वह किसी मंच पर बोलते हैं, तो दर्शक शांत होकर सिर्फ सुनते हैं। गुलजार केवल एक गीतकार या कवि के रूप में ही नहीं, बल्कि एक ऐसे पिता और इंसान के रूप में याद किए जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी संवेदनशीलता और सरलता से हर दिल को छुआ है।