विक्रमगढ़ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र महाराष्ट्र
मुंबई: विक्रमगढ़ विधानसभा सीट बीजेपी के लिए बेहद अहम है क्योंकि यह सीट बीजेपी के लिए नाक का सवाल बन गई है। 1990 से 2014 तक लगातार छह बार बीजेपी ने जीत हासिल की लेकिन 2019 के चुनाव में अविभाजित एनसीपी ने बीजेपी के विजय रथ को रोक दिया था। ऐसे में 2024 में बीजेपी इस सीट को वापस पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाने वाली है, ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है। आइए जानते हैं इस सीट पर क्या है जातीय समीकरण और किस पार्टी के लिए बन रही है बेहतरीन संभावना।
महाराष्ट्र की विक्रमगढ़ विधानसभा सीट पालघर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है। यह साल 2008 में हुए परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई है। इससे पहले यह वाडा विधानसभा सीट के नाम से पहचानी जाती थी। तब यहां भाजपा का दबदबा था। 1978 के बाद 1990 में बीजेपी ने सीट पर अपना दबदबा बनाया और 2004 तक लगातार जीत दर्ज की। 2008 में हुए परिसीमन के बाद इस सीट के कुछ क्षेत्रों को बदलकर इसका नाम विक्रमगढ़ विधानसभा सीट कर दिया गया। उसके बाद भी यहां हुए चुनाव में दो बार बीजेपी ने जीत दर्ज की आखिरी बार वाले चुनाव में एनसीपी ने बीजेपी के इस किले में सेंध लगा दी थी।
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विक्रमगढ़ सीट अस्तित्व में आने के बाद किसने जीत दर्ज की
2019: सुनील चंद्रकांत भुसारा, राकांपा
2014: विष्णु राम सवारा, भाजपा
2009: एडवोकेट चिंतामन वांगा, भाजपा
विक्रमगढ़ सीट का जातीय समीकरण
विक्रमगढ़ सीट अनुसूचित जनजाति बहुल सीट है, यहां पर अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या करीब 90 फ़ीसदी के आसपास है। 2,20,975 लोग यहां पर अनुसूचित जनजाति समुदाय के हैं। विक्रमगढ़ सीट के कुल मतदाताओं की संख्या 2,50,000 के करीब है। ग्रामीणों की संख्या 95 फ़ीसदी है और शहरी इलाके में सिर्फ चार प्रतिशत लोग ही रहते हैं। मुस्लिम वोटर की अगर बात की जाए तो सिर्फ दो प्रतिशत लोग यहां पर मुस्लिम समुदाय के हैं, तो यहां पर अनुसूचित जनजाति के समुदाय को रिझाने में जो उम्मीदवार कामयाब होता है उसकी जीत तय मानी जाती है।