बिहार विधानसभा चुनाव 2025, (कॉन्सेप्ट फोटो)
Bihar Assembly Elections 2025: मिथिलांचल की सांस्कृतिक राजधानी कहे जाने वाले दरभंगा विधानसभा क्षेत्र का बिहार की राजनीति में एक विशिष्ट स्थान है। बागमती नदी के किनारे बसा यह क्षेत्र न केवल सोलहवीं सदी के दरभंगा राज की विरासत, कला और शिक्षा का केंद्र रहा है, बल्कि राजनीतिक दृष्टि से भी यह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का गढ़ बन चुका है। यहां की पहचान मखाना, आम और मछली के व्यापार से लेकर दरभंगा राज किला, श्यामा मंदिर और डीएमसीएच जैसी प्रमुख स्वास्थ्य व शिक्षा संस्थाओं तक फैली है। निर्माणाधीन एम्स भी यहां की राजनीति और विकास की धुरी है।
1951 में विधानसभा क्षेत्र बनने के बाद से यहां कुल 17 चुनाव हो चुके हैं। आरंभिक दौर में देखा जाए तो शुरुआती चार चुनावों सहित कुल 6 बार जीत दर्ज करके यह कांग्रेस का मजबूत गढ़ था। इसके बाद पहले जनसंघ व फिर भाजपा का उदय दिखता है। 1972 में भारतीय जनसंघ ने पहली बार जीत दर्ज की। लेकिन 1995 के बाद से यह सीट लगभग भाजपा की स्थायी सीट बन गई। केवल वर्ष 2000 में राजद ने इसे 795 वोटों के मामूली अंतर से छीनने में सफलता पाई थी। वर्तमान में इस सीट पर भाजपा विधायक संजय सरावगी लगातार पांच बार (2005 से 2020) से जीत का परचम लहरा रहे हैं। यह लगातार जीत स्पष्ट करती है कि दरभंगा विधानसभा क्षेत्र आज भाजपा का अभिन्न अंग बन चुका है।
दरभंगा का सामाजिक और राजनीतिक समीकरण जातीय आधार पर दिलचस्प है। यहां ब्राह्मण, कायस्थ, दलित और अल्पसंख्यक मतदाता बड़ी संख्या में हैं। भाजपा का वोट बैंक पक्का दिखता है। भाजपा को यहां पर शहरी, उच्च जाति (सवर्ण) और गैर-यादव ओबीसी का परंपरागत समर्थन मिलता रहा है। वहीं, राजद व महागठबंधन के जनाधार को देखें तो पता चलता है कि राजद का आधार मुख्य रूप से यादव और मुस्लिम वोटरों पर टिका है, जो इस बार भाजपा को घेरने की पूरी कोशिश करेंगे।
कांग्रेस भी अपने पुराने गढ़ को वापस पाने के लिए सक्रिय है। चुनाव आयोग के 2024 के आंकड़ों के अनुसार, कुल 3,14,719 मतदाता हैं, जिनमें महिला मतदाताओं की संख्या (1,49,295) निर्णायक भूमिका निभा सकती है।
इस बार के चुनाव में विकास, रोजगार, बाढ़ की समस्या और स्वास्थ्य सुविधाओं (एम्स निर्माण सहित) जैसे मुद्दे अहम भूमिका निभा सकते हैं। दरभंगा की जनता विकास और अपनी सांस्कृतिक विरासत दोनों को महत्व देती है। 2025 का चुनाव दिलचस्प इसलिए है क्योंकि विपक्ष यहां अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए एकजुट रणनीति बना रहा है।
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इतिहास और मौजूदा समीकरणों को देखते हुए, भाजपा फिलहाल मजबूत स्थिति में है। लेकिन राजद-महागठबंधन की संयुक्त चुनौती के सामने, यह देखना होगा कि भाजपा का किला कायम रहेगा या मिथिलांचल की राजधानी में कोई नया राजनीतिक अध्याय लिखा जाएगा।