जस्टिस यशवंत वर्मा, सुप्रीम कोर्ट (फोटो-सोशल मीडिया)
नई दिल्लीः इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा कैशकांड मामले में दिलचस्प मोड़ आ गया है। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को जज के घर मिले कैश मामले में FIR की मांग वाली याचिका खारिज कर दी। कहा ये मामला प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के पास है। आप पहले जाकर उनसे गुहार लगाएं। इसके बाद हमारे पास आएं।
राज्यसभा में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने जज के घर मिले कैश पर कड़ी आपत्ति जताई थी। उन्होंने हैरानी जताते हुए कहा था कि मामला चार दिन सामने आया है। अभी तक कोई एक्शन नहीं लिया गया। इतना ही नहीं बीते 2 दिन पहले उन्होंने मुंबई में एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR होनी चाहिए।
स्टोर रूम में मिले थे कई करोड़
सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच कर रही थी। मुकदमा दर्ज करने की मांग वाली याचिका एवोकेट मैथ्यूज नेडुमपारा ने लगाई थी। गौरतलब है कि लुटिंयस दिल्ली स्थित जस्टिस यशवंत वर्मा के घर में 14 मार्च की रात को आग लग गई थी। उनके घर में के स्टोर रूम से 500-500 रूपये के जले नोटों के भरे बंडलों से बोरे मिले थे। बताया जा रहा है कि जले हुए नोट कई करोड़ थे।
CJI ने PM-राष्ट्रपति को रिपोर्ट सौंपी
भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेज दी है। सुप्रीम कोर्ट की प्रेस रिलीज के मुताबिक, 3 मई 2025 को तैयार की गई इस रिपोर्ट के साथ जस्टिस वर्मा का 6 मई का जवाब भी राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजा गया है।
तीन जजों की कमेटी ने मामले की जांच की
मामला सार्वजनिक हुआ तो आनन-फानन में तत्कालीन चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने एक इमरजेंसी मीटिंग बुलाई थी। इसके बाद 22 मार्च को इस मामले में सीजेआई ने जांच समिति बनाई थी, जिसमें पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस शील नागु, हिमाचल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जीएस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामण शामिल थीं। कमेटी ने 3 मई को रिपोर्ट तैयार की और 4 मई को CJI को सौंपी थी।
दिल्ली से इलाहाबाद हुआ ट्रांसफर
कैशकांड के समय जस्टिस यशवंत वर्मा दिल्ली हाईकोर्ट में अपनी सेवाएं दे रहे थे। दिल्ली हाईकोर्ट से पहले वह इलाहाबाद हाईकोर्ट में थे। नोट मिलने के एक से दो दिन बाद उनका पुनः इलाहाबाद हाईकोर्ट में ट्रांसफर कर दिया गया, जिसका इलाहाबाद बार एसोसिएशन विरोध किया था।