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नई दिल्ली: न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) विधेयक फिर से लाने के मुद्दे पर सरकार मौन साधे हुए है। कानून मंत्रालय से एक प्रश्न में पूछा गया था कि क्या सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए वर्तमान कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (एनजेएसी) विधेयक फिर से लाने पर विचार करेगी?
इस मामले में कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बृहस्पतिवार को विस्तार से बताया कि निरस्त हो चुके कानून की क्या विशेताएं थीं। हालांकि वह इस बात पर चुप रहे कि क्या सरकार एनजेएसी विधेयक लाने पर विचार करेगी। अपने लिखित जवाब में मेघवाल ने इस बात पर कोई जवाब नहीं दिया।
मेघवाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली को अधिक व्यापक, पारदर्शी, जवाबदेह नियुक्ति तंत्र से बदलने और प्रणाली में अधिक निष्पक्षता लाने के लिए संविधान (99वां संशोधन) अधिनियम, 2014 और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014 लाए गए थे। उन्होंने कहा कि ये कानून 13 अप्रैल, 2015 को लागू हुए और दोनों कानूनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने बाद में उन्हें असंवैधानिक और अमान्य घोषित कर दिया।
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मेघवाल ने बताया कि कानूनों के लागू होने के पहले से चल रही मौजूदा कॉलेजियम प्रणाली को प्रभावी घोषित कर दिया गया। उन्होंने यह भी बताया कि सरकार और उच्चतम न्यायालय कॉलेजियम प्रक्रियाओं के ज्ञापन को अद्यतन करने के लिए किस तरह संपर्क में हैं। यह ज्ञापन वह नियमावली है जो उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति, पदोन्नति और स्थानांतरण के बारे में मार्गदर्शन करता है। एनजेएसी हाल में फिर से चर्चा में आया जब दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश के आधिकारिक आवास पर आग लगने के बाद कथित तौर पर नोटों की आधी जली हुई गड्डियाँ पाई गईं।