छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला (फोटो सोर्स - सोशल मीडिाय)
रायपुर: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों के हक में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि छह महीने के भीतर एक ठोस नीति बनाए ताकि आरटीई (RTE) कानून के तहत इन बच्चों को निजी स्कूलों में भी मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके। हाईकोर्ट ने सरकार की निष्क्रियता को मौलिक अधिकारों का उल्लंघन मानते हुए, शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम को प्रभावी रूप से लागू करने का निर्देश दिया। इस फैसले को गरीब बच्चों के उज्ज्वल भविष्य की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
याचिका सीवी भगवंत राव की ओर से अधिवक्ता देवर्षि ठाकुर द्वारा दायर की गई थी। इसमें तर्क दिया गया कि आरटीई के तहत 6 से 14 वर्ष के ईडब्ल्यूएस बच्चों को निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा मिलनी चाहिए। हाईकोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार के पास इस विषय पर स्पष्ट नीति नहीं है, जिससे इन बच्चों को उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है। अदालत ने इसे संविधान के अनुच्छेद 21A का उल्लंघन मानते हुए सरकार को निर्देश दिया कि वह जल्द से जल्द ठोस कार्ययोजना तैयार करे।
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के बच्चों को शिक्षा के अधिकार (RTE) अधिनियम के तहत मुफ्त शिक्षा देने के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायाधीश रविन्द्र कुमार अग्रवाल की पीठ ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि वह छह महीने के भीतर एक ठोस नीति बनाए, जिससे इन बच्चों को निजी स्कूलों में भी मुफ्त और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिल सके।
यह याचिका सीवी भगवंत राव की ओर से दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को भी निजी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा का समान अधिकार मिलना चाहिए। याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सरकार की स्पष्ट नीति न होने के कारण आरटीई अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन नहीं हो रहा है, जिससे गरीब बच्चों को उनका हक नहीं मिल पा रहा है।
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हाईकोर्ट ने सरकार की निष्क्रियता को संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) प्रभावी रूप से लागू हो और इसके तहत आने वाले बच्चों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो। इसके लिए सरकार को छह महीने के भीतर एक स्पष्ट नीति तैयार करनी होगी। हाईकोर्ट के इस फैसले को कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए एक बड़ी जीत माना जा रहा है, जिससे वे भी बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकेंगे और समाज में आगे बढ़ सकेंगे।