दीक्षांत समारोह में शामिल हुए चीफ जस्टिस संजीव खन्ना।
नागपुर: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना का कहना है कि हर विवाद के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाना सही नहीं है। सबसे बेहतर समाधान है मध्यस्थता। सीजेआई संजीव खन्ना ने शनिवार को कहा कि सभी विवाद अदालतों और मुकदमों के लिए उपयुक्त नहीं होते हैं। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता ही निवारण अथवा समाधान का तरीका है क्योंकि यह रचनात्मक समाधान प्रदान करती है और रिश्तों को मजबूत करती है।
वर्धा रोड स्थित वारंगा महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एमएनएलयू) के तीसरे दीक्षांत समारोह में वे बोल रहे थे। इस समारोह की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति और नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति भूषण गवई ने की। वहीं विशेष अतिथि के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश शरद बोबडे, बॉम्बे हाई कोर्ट के मुख्य न्यायमूर्ति आलोक अराधे, न्या. अतुल चांदूरकर, न्या. नितिन सांबरे और न्या. अनिल किलोर की उपस्थिति थी।
मध्यस्थता निवारण विवाद का तरीका
इस दौरान सीजेआई खन्ना ने कहा कि हर मामले को कानूनी नजरिये से नहीं बल्कि एक मानवीय कहानी के रूप में देखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय कानूनी सहायता ढांचा शायद दुनिया में सबसे मजबूत है, जहां सभी पक्षों को सहायता दी जाती है। सीजेआई ने कहा, ‘सभी विवाद अदालतों, मुकदमेबाजी या मध्यस्थता के लिए भी उपयुक्त नहीं होते हैं। मध्यस्थता निवारण का तरीका है जो हमें केवल विवाद समाधान से कहीं अधिक प्रदान करता है।’
उन्होंने कहा कि यह साधारण हां या ना के जवाबों से परे रचनात्मक समाधानों के दरवाजे खोलता है। उन्होंने कहा कि इस रास्ते पर चलकर हम न केवल संवादों को कुशलता से सुलझाते हैं, बल्कि लोगों और व्यवसायों के बीच संबंधों को भी मजबूत करते हैं। सीजेआई संजीव खन्ना ने कहा कि वकील समस्याओं को सुलझाने वाले होते हैं। उन्हें रचनात्मक समाधान लेकर आना होता है, जो समस्या के कानूनी और मानवीय दोनों आयामों को संबोधित करते हैं।
सभी पक्षों को सहायता
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उन्होंने कहा, ‘जिस तरह समस्याओं को डिब्बों में बंद नहीं किया जा सकता, उसी तरह उनके समाधान भी नहीं हो सकते। जैसे-जैसे हमारी समस्याएं अधिक गतिशील होती जा रही हैं, उनके समाधानों के लिए और अधिक लचीला होना जरूरी है। न्याय की राह ही इसे प्राप्त करने में बाधा नहीं बन सकती।’ सीजेआई ने कहा कि लोकतंत्र को नई तकनीकों और सामाजिक गतिशीलता द्वारा ही नया रूप दिया जा रहा है।
उन्होंने कहा, ‘ये केवल अमूर्त समस्याएं नहीं हैं। ये मानवता, मानवीय गरिमा और स्वतंत्रता के लिए बहुत ही बुनियादी चुनौतियां हैं जिनके लिए नवीन समाधानों की आवश्यकता है।’ उन्होंने कहा कि भारतीय कानूनी सहायता ढांचा शायद दुनिया में सबसे मजबूत है जहां सभी पक्षों – अभियुक्तों और पीड़ितों को सहायता दी जाती है। चीफ जस्टिस ने कहा कि एक मजबूत कानूनी सहायता ढांचे और युवा वकीलों की ऊर्जा के संयोजन में भारत को पहुंच के मामले में विश्व में अग्रणी बनाने की क्षमता है।
युवा वकीलों में ऊर्जा संयोजन
सीजेआई ने सभी से परंपरा से परे सोचने और न्याय वितरण को किफायती और समयबद्ध बनाने के लिए अपने क्षितिज का विस्तार करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि आज की पीढ़ी के सामने ऐसी चुनौतियां हैं, जिनकी हमारे पूर्वजों ने शायद ही कल्पना की होगी। जैसे कि जलवायु परिवर्तन जो न केवल हमारे पर्यावरण बल्कि मानवाधिकारों और सामाजिक न्याय के ताने-बाने के लिए खतरा है। डिजिटल क्रांति भी है जो निजता, सुरक्षा और मानवीय संपर्क की प्रकृति के बारे में अभूतपूर्व सवाल खड़े करती है।
सर्वोच्च न्यायालय के भावी मुख्य न्यायाधीश भूषण गवई ने नागपुर में विधि विश्वविद्यालय की स्थापना को याद किया। नागपुर में राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना की अवधारणा तत्कालीन सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश विकास सिरपुरकर के कारण सामने आई। उस समय मुंबई और औरंगाबाद के बीच राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए संघर्ष चल रहा था। इस संघर्ष से नागपुर को लाभ हुआ और राज्य में 3 राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय स्थापित करने का निर्णय लिया गया। नागपुर विधि विश्वविद्यालय परिसर देश के सर्वोत्तम विधि विश्वविद्यालयों में से एक है, यह न्यायमूर्ति भूषण गवई द्वारा दिया गया प्रशंसनीय भाषण था।
पीएचडी धारकों सम्मानित
दीक्षांत समारोह में छात्रा अदिति बैस ने सबसे अधिक सात पदक जीते। विश्वजीत राव और आकांक्षा बोहरा को विश्वविद्यालय स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। इसके अलावा समर्थ भारद्वाज, अभिमन्यु पालीवाल, श्रुति मंडोरा, दिव्यांश निगम, ऋषिकेश पाटिल, हर्षदा नंदेश्वर, प्रज्ञा संचेती, शबनम शेख और वंजुल सिन्हा इन छात्रों को विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। दीक्षांत समारोह में पीएचडी धारकों को भी सम्मानित किया गया।