
सेबी ने शॉर्ट सेलिंग नियमों में बदलाव की खबरों को गलत बताया (sors-social media)
Mutual Fund Regulations 2026: भारतीय शेयर बाजार नियामक सेबी ने रविवार को शॉर्ट सेलिंग को लेकर चल रही सभी अटकलों और भ्रामक रिपोर्टों पर पूर्ण विराम लगा दिया है। संस्थान ने स्पष्ट किया है कि शॉर्ट सेलिंग के मौजूदा ढांचे में कोई बदलाव नहीं किया गया है और पुरानी व्यवस्था ही लागू रहेगी।
इसी के साथ सेबी ने म्यूचुअल फंड निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए ‘सेबी रेगुलेशन 2026’ के तहत नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इन सुधारों का मुख्य उद्देश्य म्यूचुअल फंड में लगने वाली छिपी हुई लागतों को खत्म करना और खर्चों की संरचना को अधिक पारदर्शी बनाना है।
सेबी ने एक आधिकारिक बयान में उन मीडिया रिपोर्टों को सिरे से खारिज कर दिया जिनमें दावा किया गया था कि 22 दिसंबर 2025 से शॉर्ट सेलिंग के नए नियम प्रभावी होंगे।
सेबी के अनुसार ऐसी खबरें पूरी तरह गलत हैं और निवेशकों को किसी भी बदलाव से चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। नियामक ने बाजार की शुचिता बनाए रखने के लिए यह स्पष्टीकरण जारी किया है ताकि ट्रेडर्स और निवेशकों के बीच किसी भी तरह का भ्रम पैदा न हो।
सेबी बोर्ड ने 1996 के पुराने नियमों की जगह ‘सेबी (म्यूचुअल फंड्स) रेगुलेशन, 2026’ को हरी झंडी दे दी है। इस बदलाव का सबसे बड़ा असर कुल व्यय अनुपात (Total Expense Ratio – TER) पर पड़ेगा।
अब निवेशकों से लिए जाने वाले शुल्कों को तीन स्पष्ट श्रेणियों में बांटा जाएगा: बेस एक्सपेंस रेशियो, ब्रोकर शुल्क और वैधानिक शुल्क। इससे निवेशकों को यह समझने में आसानी होगी कि उनका कितना पैसा फंड प्रबंधन और कितना टैक्स या अन्य शुल्कों में जा रहा है।
नए नियमों के तहत सेबी ने कुछ प्रमुख शुल्कों जैसे जीएसटी, स्टाम्प ड्यूटी और एसटीटी को बेस एक्सपेंस रेशियो से अलग कर दिया है। ये शुल्क अब केवल वास्तविक खर्च के आधार पर ही वसूले जा सकेंगे।
इसके अतिरिक्त, सेबी ने इंडेक्स फंड्स और ईटीएफ के लिए अधिकतम खर्च की सीमा को 1 प्रतिशत से घटाकर 0.9 प्रतिशत कर दिया है। क्लोज-एंडेड इक्विटी स्कीमों के लिए भी इस सीमा को 1.25 प्रतिशत से घटाकर 1 प्रतिशत किया गया है, जिससे निवेशकों के हाथ में आने वाला रिटर्न बेहतर होगा।
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सेबी ने ब्रोकर शुल्क की सीमाओं में भी संशोधन किया है ताकि फंड हाउस मनमाने ढंग से पैसा न वसूल सकें। अब इक्विटी कैश मार्केट ट्रांजैक्शन के लिए 6 बेसिस प्वाइंट्स और डेरिवेटिव के लिए 2 बेसिस प्वाइंट्स की सीमा तय की गई है।
साथ ही, डिस्ट्रीब्यूशन कमीशन और प्रदर्शन-आधारित खर्चों पर भी कड़े नियम लागू किए गए हैं। सेबी का मानना है कि इन कदमों से म्यूचुअल फंड इंडस्ट्री अधिक जवाबदेह बनेगी और आम निवेशकों का भरोसा बाजार पर और मजबूत होगा।






