आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास (सौजन्य : सोशल मीडिया )
नई दिल्ली : रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया यानी आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने सोमवार को सेंट्रल बैंकिंग एट क्रॉसरोड्स से संबंधित कार्यक्रम में विदेशी धन प्रेषण के मामले पर चर्चा की है। ये मुद्दा विकासशील अर्थव्यवथाओं के लिए काफी अहम हैं।
उन्होंने कहा कि नई टेक्नोलॉजी और पेमेंट सिस्टम का उपयोग सीमापार भुगतान में तेजी लाने और विस्तार करने के लिए किया जा सकता है। दास ने ‘सेंट्रल बैंकिंग एट क्रॉसरोड्स’ विषय पर आयोजित सम्मेलन में अपने संबोधन में कहा, “भारत सहित कई उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के लिए सीमा पार पीयर-टू-पीयर यानी पी2पी पेमेंट की संभावनाओं को तलाशने के लिए धन प्रेषण शुरुआती बिंदु है। हमारा मानना है कि ऐसे धन प्रेषणों की लागत और समय को जरूरी रूप से कम करने की अपार संभावनाएं हैं।”
उन्होंने कहा कि इसके अलावा डॉलर, यूरो और पाउंड जैसी प्रमुख व्यापारिक मुद्राओं में लेनदेन निपटाने के लिए वास्तविक समय सकल निपटान यानी आरटीजीएस के विस्तार की व्यवहार्यता द्विपक्षीय या बहुपक्षीय व्यवस्था के माध्यम से तलाशी जा सकती है।
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दास ने कहा कि भारत और कुछ अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं ने द्विपक्षीय और बहुपक्षीय दोनों तरीकों से सीमा पार तीव्र पेमेंट सिस्टम के संपर्क का विस्तार करने के प्रयास पहले ही शुरू कर दिए हैं। उन्होंने कहा कि सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी यानी सीबीडीसी एक और सेक्टर है, जिसमें कुशल सीमा-पार पेमेंट की सुविधा प्रदान करने की क्षमता है। उन्होंने कहा कि मानकों और अंतर-संचालन का सामंजस्य सीबीडीसी के लिए सीमा-पार भुगतान और क्रिप्टोकरेंसी से जुड़ी गंभीर वित्तीय स्थिरता चिंताओं को दूर करने के लिए महत्वपूर्ण होगा।
आरबीआई गवर्नर ने बैंकिंग क्षेत्र में कृत्रिम मेधा यानी एआई के दुरुपयोग पर भी चिंता जताई और कहा कि इससे साइबर हमले और डेटा उल्लंघन की घटनाएं बढ़ सकती हैं। साथ ही उन्होंने कहा, “बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को इन सभी जोखिमों के खिलाफ पर्याप्त रिस्क मीटिगेशन उपाय करने चाहिए। अंतिम विश्लेषण में, बैंकों को एआई और बिगटेक के लाभों का लाभ उठाना चाहिए।
(एजेंसी इनपुट के साथ)