
पीएम मोदी और डोनाल्ड ट्रंप, फोटो - एक्स
नई दिल्ली: भारत वैश्विक व्यापार पर अमेरिका द्वारा अतिरिक्त आयात शुल्क लगाए जाने से उत्पन्न स्थिति पर नजर रखेगा तथा जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाएगा। इसकी वजह यह है कि अमेरिका को खुद अपने घरेलू उद्योग से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। समाचार एजेंसी पीटीआई ने सरकारी सूत्रों के हवाले से ये बात कही है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दो अप्रैल को भारत और चीन सहित लगभग 60 देशों पर 11 से 49 प्रतिशत के जवाबी शुल्क की घोषणा की। यह नौ अप्रैल से लागू होगा।
अधिकारी ने कहा कि भारत के लिए चुनौतियां और अवसर, दोनों हैं, क्योंकि निर्यात में उसके कई प्रतिस्पर्धी देश जैसे चीन, वियतनाम, बांग्लादेश, कंबोडिया और थाइलैंड उच्च शुल्क का सामना कर रहे हैं। सूत्र ने कहा कि एक देश के तौर पर हमें स्थिति पर नजर रखने की ज़रूरत है और जल्दबाज़ी करने की जरूरत नहीं है। यह कुछ नया हुआ है। यह अभूतपूर्व है। अमेरिकी उद्योग भी इस कदम से नाराज होंगे और चुनौतियां भी होंगी।
अमेरिका की ओर से आयात शुल्क बढ़ाने का उद्देश्य व्यापार घाटे में कमी लाना तथा मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा देना है। भारत पर 26 प्रतिशत शुल्क के बारे में उन्होंने कहा कि केवल छह-सात क्षेत्र जैसे झींगा और कालीन को भारी करों से चुनौती का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन फार्मा और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे अधिकांश अन्य क्षेत्रों को निर्यात बढ़ाने का अवसर मिलेगा, क्योंकि प्रतिस्पर्धी देशों को भारत की तुलना में अधिक शुल्क का सामना करना पड़ेगा।
मोटे अनुमान के अनुसार, भारत के लगभग 25 प्रतिशत निर्यात को कर से छूट मिली हुई है तथा शेष के लिए ‘मिश्रित परिदृश्य’ है। उन्होंने यह भी कहा कि सोने के आभूषण और कालीन जैसी मूल्य-संवेदनशील वस्तुओं पर शुल्क लगाया जाएगा। अमेरिका वित्त वर्ष 2021-22 से 2023-24 तक भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था। भारत के कुल वस्तु निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी करीब 18 प्रतिशत, आयात में 6.22 प्रतिशत और द्विपक्षीय व्यापार में 10.73 प्रतिशत है।
अमेरिका के साथ भारत का 2023-24 में वस्तुओं पर व्यापार अधिशेष (आयात और निर्यात के बीच का अंतर) 35.32 अरब डॉलर था। यह 2022-23 में 27.7 अरब डॉलर, 2021-22 में 32.85 अरब डॉलर, 2020-21 में 22.73 अरब डॉलर और 2019-20 में 17.26 अरब डॉलर था। पिछले साल अमेरिका को भारत के मुख्य निर्यात में औषधि निर्माण और जैविक उत्पाद (8.1 अरब डॉलर), दूरसंचार उपकरण (6.5 अरब डॉलर), कीमती और अर्द्ध-कीमती पत्थर (5.3 अरब डॉलर), पेट्रोलियम उत्पाद (4.1 अरब डॉलर), सोना और अन्य कीमती धातु के आभूषण (3.2 अरब डॉलर), सहायक उपकरण सहित सूती तैयार वस्त्र (2.8 अरब डॉलर), और लोहा और इस्पात के उत्पाद (2.7 अरब डॉलर) शामिल हैं।
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आयात में कच्चा तेल (4.5 अरब डॉलर), पेट्रोलियम उत्पाद (3.6 अरब डॉलर), कोयला, कोक (3.4 अरब डॉलर), तराशे और पॉलिश किए हुए हीरे (2.6 अरब डॉलर), इलेक्ट्रिक मशीनरी (1.4 अरब डॉलर), विमान, अंतरिक्ष यान और उसके कलपुर्जे (1.3 अरब डॉलर) तथा सोना (1.3 अरब डॉलर) शामिल थे।व्यापार विशेषज्ञों के अनुसार, चूंकि चीन को 54 प्रतिशत शुल्क का सामना करना पड़ेगा, इसलिए भारत में वस्तुओं की डंपिंग की संभावना है।






