प्रतीकात्मक तस्वीर, (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: मिडिल ईस्ट में पिछले एक हफ्ते से ईरान-इजारयल के बीच जारी युद्ध में अब अमेरिका के कूदने से पूरे विश्व की चिंता बढ़ गई है। दोनों देशों के बीच चल रहे तनाव को लेकर कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। वहीं, अगर यह युद्ध लंबे समय तक चलता रहा तो तेल की कीमतों में भारी बढ़ोतरी होने की संभावना है। होर्मुज जलडमरूमध्य की सिक्योरिटी को लेकर भी वैश्विक चिंताएं बढ़ गई हैं। ये वही मार्ग है, जहां से ईरान, इराक, सऊदी अरब, कुवैत और यूएई जैसे देशों देशों से तेल और एलएनजी का एक्सपोर्ट होता है।
ईरान और इजरायल के बीच तनाव से होने वाले संकट को भारत ने पहले ही भांप लिया था और देश में कच्चे तेल की कमी न हो, इसके लिए रणनीतिक रूप से पूरी तरह से तैयार हो चुका था। भारत ने जून में रूस और अमेरिकी से कच्चे तेल का इंपोर्ट बढ़ा दिया।
मिडिल ईस्ट में अस्थिरता के बीच भारत ने इराक, सऊदी अरब, यूएई और कुवैत जैसे अपने पारंपरिक तेल सप्लायर्स की तुलना में रूस से ज्यादा तेल खरीदा। ग्लोबल ट्रेड एनालिस्ट फर्म कैपलर के आंकड़ों के मुताबिक, भारत ने शुरूआती माह में रूस से हर दिन 20 से 22 लाख बैरल कच्चा तेल खरीदा। यह आंकड़ा पिछले दो वर्षों के हाई लेवल पर है। मई के महीने में भारत ने रूस से 19.6 लाख बैरल कच्चा तेल प्रतिदिन खरीदता था। जून में अमेरिका से भारत को कच्चा तेल आयात 4.39 लाख बैरल प्रतिदिन पहुंच गया, जो मई में 2.80 लाख बैरल प्रतिदिन था।
आपको बता दें कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल आयातक देश है। भारत औसतन 5.1 मिलियन बैरल क्रूड ऑयल का इंपोर्ट करता है। यूक्रेन युद्ध के बाद भारत रूस से सस्ता तेल खरीद रहा है और पश्चिम एशिया से आयात को कम कर दिया है। इसी वजह से रूस से भारत का तेल आयात कुल इंपोर्ट का एक प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो चुका है।
कैपलर के सुमित रितोलिया का कहना है कि होर्मुज जलडमरूमध्य को पूरी तरह बंद करना संभव नहीं है। चीन, जो ईरान का सबसे बड़ा तेल खरीदार है और वह खाड़ी क्षेत्र से 47 प्रतिशत तेल आयात करता है। ईरान का 96 प्रतिशत तेल निर्यात खर्ग द्वीप से होता है, जो होर्मुज पर ही निर्भर है। ऐसे में ईरान इस मार्ग को बंद कर अपने आपको नुकसान नहीं पहुंचा सकता है।