
प्रतीकात्मक तस्वीर, (सोर्स- सोशल मीडिया)
नई दिल्ली : प्राइवेट जॉब की एक सबसे बड़ी खामी ये होती है कि ये स्थिर नहीं होती है। अक्सर ऐसा देखा जाता है कि प्राइवेट जॉब करने वाले कई कर्मचारी समय समय पर नौकरी बदलते हैं। नौकरी बदलते समय कर्मचारी का उसके एम्पॉयलर की ओर से एक नया ईपीएफ अकाउंट ओपन किया जा सकता है। हालांकि ईपीएफ अकाउंट ओपन करते समय पुराने नंबर का ही उपयोग किया जा सकता है। ऐसे में कई कर्मचारियों को ये गलतफहमी रहती है कि यूएएन नंबर पुराना वाला है, तो उस यूएएन नंबर से चलने वाला उनका ईपीएफ अकाउंट भी एक ही हो सकता है।
जॉब बदलने के साथ ही आप कंपनी को अपना यूएएन नंबर देते हैं, कंपनी उस यूएएन नंबर के अंदर आपका एक और पीएफ अकाउंट खोलती है। इसके बाद आपका और नई कंपनी का पीएफ कॉन्ट्रिब्यूशन उस नए खाते में जमा होना शुरू हो जाता है। ये जरूरी है कि न्यू पीएफ अकाउंट खुलने के बाद पहले वाले अकाउंट को आप नए वाले से मर्ज कर दें। जिसे आप आराम से ईपीएफओ की वेबसाइट पर जाकर मर्ज कर सकते हैं। अगर आपने अभी तक ये काम नहीं किया है तो इसके कारण आपको भारी नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
सबसे पहले आपको ईपीएफओ की मेंबर सेवा पोर्टल https://unifiedportal-mem.epfindia.gov.in पर विजिट करना होगा। इसके बाद आपको ऑनलाइन सर्विस सेक्शन के अंदर ‘वन मेंबर – वन ईपीएफ अकाउंट- ट्रांसफर रिक्वेस्ट को सेलेक्ट करना होगा। फिर आपको पर्सनल जानकारी और करंट एंप्लॉयर के अकाउंट को वेरीफाई करना जरूरी होगा। इसके बाद से आपको गेट डिटेल्स पर क्लिक करना होगा, इसके बाद आपके सामने पुराने एम्प्लॉयर्स की सूची ओपन हो जाएगी। यहां पर आप अपने जिस अकाउंट को ट्रांसफर करना चाहते हैं, उस पर क्लिक करें।
फिर आप गेट ओटीपी पर क्लिक करें। इसके बाद आपके रजिस्टर्ड मोबाइल नंबर पर ओटीपी आएगा, आप इसे डालकर सबमिट करें। इसके बाद आपकी रिक्वेस्ट सबमिट हो जाएगी। आपके करंट एप्म्पॉयर को इसे अप्रूव करना होगा। जिसके बाद से ईपीएफओ आपके पुराने अकाउंट को न्यू अकाउंट के साथ मर्ज कर दिया जाएगा। इसके कुछ देर बाद आप अपना मर्जर स्टेटस चेक कर सकते हैं।
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अकाउंट मर्ज न करने से सबसे पहला नुकसान ये है कि न्यू ईपीएफ अकाउंट खुलने के कारण पुराने अकाउंट में पड़ा हुआ आपका पैसा एक साथ नहीं दिखता है। साथ ही इन्हें मर्ज कराना टैक्स सेविंग के लिहाज से भी जरूरी है। जब आप किसी ईपीएफ अकाउंट से पैसे निकालते हैं तो 5 साल की यह लिमिट देखी जाती है। 5 साल के कॉन्ट्रीब्यूशन के बाद जमा राशि की निकासी पर टैक्स नहीं देना पड़ता है।






