जीडीपी रेट ( सौजन्य : सोशल मीडिया )
नई दिल्ली : ईवाई इंडिया ने हाल ही में भारत की जीडीपी को लेकर एक रिपोर्ट जारी की है। इस रिपोर्ट के आधार पर ये पता चला है कि वित्त वर्ष 2025 और वित्त वर्ष 2026 में भारत की जीडीपी 6.5 प्रतिशत तक के स्थिर रहने का अनुमान है। रिपोर्ट में उन प्रमुख राजकोषीय और आर्थिक उपायों पर प्रकाश डाला गया है जो इस ग्रोथ सर्कल को बनाए रख सकते हैं और बढ़ावा दे सकते हैं।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यम अवधि में, भारत की वास्तविक जीडीपी वृद्धि की संभावनाओं को प्रति वर्ष 6.5 प्रतिशत पर रखा जा सकता है, बशर्ते कि भारत सरकार चालू वित्त वर्ष के बचे हुए समय में अपने पूंजीगत व्यय में वृद्धि को तेज करे और भारत सरकार और राज्य सरकारों की भागीदारी के साथ मध्यम अवधि के निवेश पाइपलाइन के साथ आए।
रिपोर्ट की एक महत्वपूर्ण सिफारिश यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों का संयुक्त ऋण देश के नाममात्र जीडीपी के 60 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होना चाहिए। इस सीमा के लिए सरकार के प्रत्येक स्तर को अपने ऋण को जीडीपी के 30 प्रतिशत पर सीमित करना होगा। इसमें कहा गया है कि संयुक्त ऋण-जीडीपी अनुपात लक्ष्य को 60 प्रतिशत पर बनाए रखा जाना चाहिए, लेकिन इसे भारत सरकार और राज्यों के बीच 30-30 प्रतिशत पर समान रूप से विभाजित किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में नेशनल सेविंग में सुधार के लिए केंद्र और राज्य दोनों स्तरों पर चालू आय और व्यय को संतुलित करने के महत्व पर भी जोर दिया गया है।
वास्तविक रूप से सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के 36.5 प्रतिशत की नेशनल सेविंग दर प्राप्त करने के साथ-साथ विदेशी निवेश से 2 प्रतिशत का अतिरिक्त योगदान प्राप्त करने से कुल निवेश स्तर 38.5 प्रतिशत तक बढ़ सकता है।
निवेश के इस स्तर से सालाना 7 प्रतिशत की स्थिर इकोनॉमिक ग्रोथ रेट को समर्थन मिलने की उम्मीद है। रिपोर्ट में भारत की विकास महत्वाकांक्षाओं का समर्थन करते हुए राजकोषीय अनुशासन सुनिश्चित करने के लिए राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन यानी एफआरबीएम अधिनियम में महत्वपूर्ण सुधारों का भी आह्वान किया गया है।
एक प्रमुख सिफारिश राजस्व खाते को संतुलित करने को केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए प्राथमिकता बनाना है। इससे सरकारी बचत समाप्त हो जाएगी और सतत विकास के लिए आवश्यक उत्पादक निवेशों के लिए संसाधन मुक्त हो जाएंगे। इसमें केंद्र और राज्य दोनों सरकारों के लिए जीडीपी के 3 प्रतिशत के राजकोषीय घाटे का लक्ष्य प्रस्तावित किया गया है। हालांकि, केंद्र सरकार को आर्थिक मंदी जैसी अप्रत्याशित चुनौतियों से निपटने के लिए राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 1 प्रतिशत से 5 प्रतिशत के बीच रखने की अनुमति देते हुए लचीलापन बनाए रखना चाहिए।
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रिपोर्ट में संतुलित राजकोषीय नीतियों और परिवारों, व्यवसायों और सार्वजनिक क्षेत्र से मजबूत निवेश के महत्व पर प्रकाश डाला गया है। इन उपायों के साथ, भारत दीर्घकालिक विकास और आर्थिक स्थिरता हासिल करने के लिए अच्छी स्थिति में है।