भारतीय बासमती राइस (सौ. सोशल मीडिया )
कोलकाता : इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स को लेकर एक बहुत बड़ी खबर आ रही है। बता दें कि इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स ने 26 प्रतिशत रेसीप्रोकल टैरिफ लगाने के अमेरिका के फैसले के बाद ‘वेट एंड वॉच’ का रुख अपना लिया है, जबकि इंडस्ट्री के दिग्गजों का कहना है कि भारत की इन बिल्ड कॉम्पीटिटिवनेस के कारण इसका लॉन्ग टर्म असर लिमिटेड रह सकता है।
भारतीय चावल निर्यातक संघ यानी आईआरईएफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने पीटीआई-भाषा से कहा है कि हालांकि शॉर्ट टर्म में मूल्य में उतार-चढ़ाव हो सकता है लेकिन आने वाले 2-3 महीनों में बाजार में स्थिरता आने की उम्मीद है। रेसीप्रोकल टैरिफ एक अस्थायी बाधा है, न कि अवरोध। रणनीतिक योजना और लचीलेपन के साथ हम न सिर्फ बचाव कर सकते हैं बल्कि अमेरिकी मार्केट्स में विस्तार भी कर सकते हैं।
हालांकि गर्ग ने कहा कि भारत से इंपोर्ट किए जाने वाले प्रोडक्ट्स पर अमेरिका में 26 प्रतिशत टैरिफ लगाया जाना जरूरी है, लेकिन इससे एक्सपोर्टर्स में घबराहट नहीं होनी चाहिए। गर्ग ने कहा कि अमेरिका बासमती चावल के लिए भारत का सबसे बड़ा मार्केट नहीं है। उन्होंने कहा है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत ने 52.4 लाख टन में से 2.34 लाख टन बासमती चावल ही अमेरिका को एक्सपोर्ट किया। अप्रैल-नवंबर 2024 के दौरान भारत के कुल 42 लाख टन बासमती एक्सपोर्ट्स में से 2.04 लाख टन अमेरिका को एक्सपोर्ट हुआ था। चावल एक्सपोर्ट के लिए पश्चिम एशिया भारत का प्रायमरी डेस्टिनेशन बना हुआ है।
एक्सपोर्टर्स ने कहा कि टैरिफ बढ़त के बाद भारत को प्रतिस्पर्धी देशों की तुलना में प्राइस डिटरमिनेशन के संदर्भ में बढ़त हासिल है। अमेरिका ने अन्य प्रमुख राइस एक्सपोर्टर्स देशों पर ज्यादा टैरिफ लगाया है। यह टैरिफ चीन पर 34 प्रतिशत, पाकिस्तान पर 30 प्रतिशत, वियतनाम पर 46 प्रतिशत और थाईलैंड पर 37 प्रतिशत है। गर्ग ने कहा है कि अन्य देशों की तुलना में कम टैरिफ के कारण भारत अपना प्रतिस्पर्धी लाभ बनाए रखेगा।
कोलकाता स्थित राइस एक्सपोर्टर्स फर्म राइसविला के निदेशक सूरज अग्रवाल ने कहा कि अमेरिकी टैरिफ ग्रोथ से भारत की लॉन्ग टर्म संभावनाओं में कोई बदलाव नहीं आएगा। उन्होंने कहा है कि भारतीय बासमती ने अमेरिकी उपभोक्ताओं के साथ भरोसा कायम किया है। अनुबंधों और प्राइस डिटरमिनेशन स्ट्रैटेजीज में कुछ दोबारा बातचीत हो सकती है, लेकिन लगातार स्थिर क्वालिटी के कारण डिमांड बनी रहेगी। हालांकि एक्सपोर्टर्स को आने वाले भविष्य में कुछ चुनौतियां पैदा होने की आशंका भी सता रही है।
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एक व्यवसायी ने कहा है कि कीमतों में बदलाव के कारण मौजूदा अनुबंधों पर नए सिरे से बातचीत की जरूरत पड़ सकती है। बेहतर ब्रांडिंग या पैकेजिंग के माध्यम से उच्च रिटेल प्राइस को उचित ठहराने का प्रेशर भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी इंपोर्टर्स लंबी ऋण अवधि या विलंबित एक्सपोर्ट की डिमांड भी कर सकते हैं जो इंडियन एक्सपोर्टर्स के नकदी प्रवाह पर असर डाल सकता है।