पीएम मोदी और चिराग पासवान, फोटो- सोशल मीडिया
Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव के लिए NDA में रविवार को सीट बंटवारे का ऐलान हो गया है। बीजेपी और जेडीयू 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) को 29 सीटें मिली हैं। मन के मुताबिक सीटों की संख्या मिलने के बाद अब असली मामला मनपसंद विधानसभा क्षेत्रों पर फंसा है।
बिहार विधानसभा चुनाव के लिए हुए एनडीए सीट बंटवारे में बीजेपी और जेडीयू ने बराबर-बराबर सीटों पर लड़ने का फॉर्मूला तय किया है। दोनों पार्टियां 101-101 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी। बाकी सीटें छोटे सहयोगी दलों को दी गई हैं। इन सहयोगी दलों में सबसे ज़्यादा फ़ायदा चिराग पासवान की पार्टी एलजेपी (रामविलास) को हुआ है, जिसे 29 सीटें मिली हैं।
चिराग की पार्टी लगातार 30 से 35 सीटें मांग रही थी, और उसी लिहाज़ से उसे 29 सीटें दी गई हैं। चिराग पासवान को एनडीए में मन के मुताबिक सीटों की संख्या तो मिल गई, लेकिन क्या उन्हें पसंदीदा सीटें भी मिल पाएंगी, यह अभी पूरी तरह से तय नहीं हुआ है। असली मामला उन सीटों पर फंसा है, जहां पर जेडीयू, बीजेपी और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (जीतनराम मांझी की पार्टी) का कब्जा है।
चिराग पासवान ने जिन 29 सीटों पर चुनाव लड़ने का अभी तक प्लान बनाया है, उनमें से कई सीटें ऐसी हैं, जिन पर जेडीयू और बीजेपी का कब्ज़ा है। सूत्रों के अनुसार, एलजेपी (आर) की दावे वाली चार सीटों पर बीजेपी का कब्ज़ा है तो तीन सीटों पर जेडीयू के विधायक हैं। इसके अलावा एक सीट पर जीतनराम मांझी की पार्टी का कब्जा है। जेडीयू के लिए पिछले चुनाव में जीती हुई सीटें एलजेपी के लिए छोड़ना आसान नहीं होगा।
सीट बंटवारे से यह साफ़ हो गया है कि चिराग पासवान का एनडीए में क़द बढ़ा है। बीजेपी और जेडीयू दोनों अपनी सीटों का नुक़सान उठाकर भी चिराग को ज़्यादा महत्व देने का काम किया है। चिराग पासवान को अब बिहार की राजनीति में ‘किंगमेकर’ के तौर पर देखा जा रहा है।
चिराग की अहमियत इसलिए बढ़ गई है क्योंकि वह अपने पिता और बिहार के दिग्गज दलित नेता राम विलास पासवान की सियासी विरासत को संभाल रहे हैं। राम विलास पासवान का दलितों में, खासकर दुसाध समुदाय में, गहरी जड़ें वाला वोट बैंक था। यह समुदाय राज्य में एक बड़ा जनसमूह है और एनडीए के लिए इसका साथ जीत में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
2024 के लोकसभा चुनाव में चिराग पासवान की पार्टी ने शानदार प्रदर्शन किया था, जहां वह पांच सीटों पर चुनाव लड़े और सभी पांचों पर जीत दर्ज की। इस नतीजे ने उनकी संगठन और जनाधार की मजबूती को दिखाया। सामाजिक समीकरणों के हिसाब से भी चिराग महत्वपूर्ण हैं। बीजेपी को जहां सवर्ण और शहरी वोटरों का समर्थन मिलता है, वहीं जेडीयू को कुर्मी और पिछड़े वर्ग का। ऐसे में, चिराग की पार्टी दलित समुदाय को जोड़कर गठबंधन की सामाजिक पकड़ को मजबूत करती है।
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चिराग पासवान अब सिर्फ कुछ सीटें जीतने तक सीमित नहीं हैं। वह खुद को बिहार की अगली पीढ़ी के नेताओं में स्थापित करना चाहते हैं। इस बार किंगमेकर बनने का सपना लेकर चुनावी मैदान में उतर रहे चिराग, एनडीए की रणनीति में अब छोटे सहयोगी नहीं, बल्कि मुख्य चेहरा बन गए हैं।