आरजेजी ने अपने यात्रा में गमछा नहीं रखने का दिया निर्देश (सौ:-सोशल मीडिया)
पटना: बिहार की राजनीति को समझना समुंद्र को नापने बराबर है। यहां की सियासत में गमछा और लाठी का उतना ही महत्व है, जितना लिट्टी में चोखा का है। खैर एक बार फिर बिहार में गमछा पर चर्चा तब शुरू हुआ, जब नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने गमछा को लेकर निर्देश जारी किया। बिहार में 10 सिंतबर को कार्यकर्ता संवाद यात्रा शुरू होने जा रहा है। इस दिन से तेजस्वी यादव एक अनोखे यात्रा पर निकलेंगे।
आरेजडी द्वारा शुरू हो रही इस यात्रा को लेकर कार्यकर्ताओं के लिए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए गए हैं। जिसमें पार्टी प्रमुख द्वारा गमछे के स्थान टोपी और बैज लगाने की बात कही गई है।
तेजस्वी यादव के इस दिशा-निर्देश से एक नया बवाल छीड़ गया है। यादव समाज में गमछा और लाठी का खास महत्व है। हालांकि बिहार के अन्य समुदाय द्वारा इसे दादादागिरी और लफुआ पना माना जाता है। वहीं चरवाहा समाज इसे अपना एक खास पहचान मानती है, ऐसे में गमछे को राजनीति से दूर करने का क्या मतलब है। कुछ लोगों का कहना है कि यह ऐसा इसलिए क्योंकि वो प्रशांत किशोर द्वारा बनाई गई आरजेडी की छवी को चेंज करना चाहते हैं।
बिहार में आरजेडी का M-Y समीकरण ही ताकत है। ऐसे में ऐसे रिस्क लेना पार्टी के लिए महंगा पड़ सकता है। वहीं मुस्लिम वोटरों को तोड़ने के लिए प्रशांत किशोर ने 40 मुस्लिमों को टिकट देने का वादा किया है। साथ ही जन सुराज ने आरजेडी पर आरोप भी लगाया है कि उनके लिए मुस्लिम केवल वोट बैंक हैं। अगर ऐसा नहीं है तो जनसंख्या के हिसाब से उन्हें टिकट दें।
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प्रशांत किशोर ने घोषणा किया है कि वो बिहार विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी की ओर से सभी सीटों पर उम्मीदवारों को उतारेंगे। किशोर के इस घोषणा से बिहार में दो मुख्य पार्टियों के अलावा एक तीसरी पार्टी को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। प्रशांत किशोर का बिहार की राजनीति में एंट्री लेने से एनडीए का कितना लॉस होगा ये तो बाद की बात है, लेकिन आरजेडी का नुकसान होना शुरू हो गया है। तेजस्वी यादव इस असमंजस में है कि अब पार्टी को एक नया रुप दिया जाए या उसी छवी को पकड़े रहे जिससे की M-Y समीकरण बिगड़ ना पाए।