
सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा सीट (सोर्स- डिजाइन)
Simri Bakhtiyarpur Assembly Constituency: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की गहमागहमी में सहरसा जिले की सिमरी बख्तियारपुर सीट (Simri Bakhtiyarpur Assembly Seat) पर हर किसी की नजर टिकी है। खगड़िया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली यह सीट, न केवल अपने मखाना उद्योग के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के बीच कड़े संघर्ष का केंद्र भी है।
अर्थव्यवस्था: मखाने की महक सिमरी बख्तियारपुर क्षेत्र की पहचान मखाने की खेती से है, जिसने स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूत आधार दिया है।
कृषि आधार: क्षेत्र का भूभाग समतल और उपजाऊ है, जहां धान, गेहूं और मक्का की खेती होती है।
स्थानीय उद्योग: मखाने की बढ़ती मांग देश और विदेश में यहाँ की अर्थव्यवस्था को पोषित करती है। इसके अलावा, चावल मिल और ईंट भट्ठे जैसे लघु उद्योग भी स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराते हैं।
कनेक्टिविटी: राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे स्टेशन से जुड़ा होना इसे व्यापार और आवागमन का प्रमुख केंद्र बनाता है।
राजनीतिक इतिहास: कांग्रेस से राजद के उदय तक सिमरी बख्तियारपुर विधानसभा की स्थापना 1951 में हुई थी।
कांग्रेस का प्रभुत्व: इस सीट पर कांग्रेस ने सबसे अधिक आठ बार जीत हासिल की, जो इसके शुरुआती राजनीतिक प्रभुत्व को दर्शाता है।
JDU का गढ़: 2005, 2010 और 2015 में यह सीट JDU के कब्जे में रही, जहाँ दिनेश चंद्र यादव ने लगातार मजबूत उपस्थिति दर्ज कराई थी।
राजद का उदय: 2019 के उपचुनाव में राजद के युसुफ सलाउद्दीन ने जीत हासिल कर समीकरण बदल दिए और 2020 के चुनाव में भी उन्होंने वीआईपी के मुकेश सहनी को हराकर सीट अपने पास रखी।
वर्तमान परिदृश्य यह है कि यहाँ भाजपा की प्रत्यक्ष मौजूदगी उतनी दमदार नहीं है, और मुख्य मुकाबला JDU के दिनेश चंद्र यादव और राजद के युसुफ सलाउद्दीन के बीच ही देखने को मिलता है।
3,51,506 कुल मतदाताओं वाली इस सीट का राजनीतिक समीकरण जातिगत आधार पर काफी हद तक प्रभावित होता है:
यादव और मुस्लिम पारंपरिक रूप से राजद का आधार राजद को यहाँ सामाजिक आधार मिला है।
कुशवाहा और दलित निर्णायक भूमिका ये वोटर अक्सर विकास और व्यक्तिगत छवि के आधार पर JDU या अन्य दलों को समर्थन देते हैं।
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स्थानीय मुद्दों में बाढ़ नियंत्रण (क्योंकि यह इलाका बूढ़ी गंडक और कोसी के प्रभावों में है), मखाना उद्योग को बढ़ावा, स्वास्थ्य सुविधाएं और युवाओं को रोजगार जैसे गंभीर मामले चुनावी बहस का केंद्र बने हुए हैं। जनता इस बार उन प्रत्याशियों की ओर झुक सकती है जो बाढ़ और पलायन जैसी गंभीर समस्याओं का ठोस समाधान पेश करेंगे।






